श्रीलंका में रामायण से जुड़े स्थलों को विकसित करने पर भारत का जोर

श्रीलंका में रामायण से जुड़े स्थलों को विकसित करने पर भारत का जोर

कोलंबो। भारत और श्रीलंका का प्राचीन काल से ही खास सांस्कृतिक जुड़ाव रहा है। साझा संस्कृति और धार्मिक मान्यताएं दोनों देशों के लोगों को एक सूत्र में पिरोने का काम करती हैं। भारत अपनी ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के तहत विभिन्न क्षेत्रों में श्रीलंका की निरंतर मदद कर रहा है। अब भारत के सहयोग से रामायण से जुड़े स्थानों के कायाकल्प से श्रीलंका की पर्यटन उद्योग को एक नई गति मिलने की उम्मीद है।

श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त संतोष झा ने रविवार को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के शीर्ष पदाधिकारियों से मुलाकात की और द्वीप राष्ट्र में रामायण से जुड़े स्थानों को विकसित करने में सहयोग पर विचार-विमर्श किया। संतोष झा ने यहां श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देवगिरि महाराज सहित ट्रस्ट के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और एक बैठक के दौरान उन तौर-तरीकों पर चर्चा की, जिनसे भारत श्रीलंका में रामायण से संबंधित स्थानों को विकसित कर सकता है।

कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा उच्चायुक्त संतोष झा ने इंडिया हाउस में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देवगिरि महाराज और उनकी टीम की मेजबानी की। इस दौरान उन तरीकों पर चर्चा की गई, जिनसे भारत श्रीलंका में रामायण ट्रेल के विकास, पी2पी (लोगों से लोगों के बीच) जुड़ाव और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।

भारतीय उच्चायुक्त श्रीलंका में गिरि महाराज द्वारा समर्थित रामायण ट्रेल परियोजना के उद्घाटन समारोह में भी शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा आज जिस तरह भारत-श्रीलंका की दोस्ती फल-फूल रही है, उसी तरह रामायण ट्रेल भी फले-फूले। भारत में बौद्ध सर्किट और श्रीलंका में रामायण ट्रेल हमारी साझा प्राचीनता को प्रदर्शित करती है। यह प्रोजेक्ट पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने के अलावा भारत-श्रीलंका के बीच सभ्यतागत जुड़ाव को आगे बढ़ाएगा।

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