सपा के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं, का चुनाव

एमवाई की जगह पीडीएम, नया सपाई फार्मूला

सपा के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं, का चुनाव

* अब तक केवल 4 मुस्लिमों को मिला टिकट * दलित, पिछड़े, अति पिछड़ों को मिले सर्वाधिक टिकट * मुस्लिम -यादव को घर का मान चल रही पार्टी * भाजपा के अति आत्मविश्वास और एंटी इनकमबेंसी का भी लाभ 

(हरिमोहन विश्वकर्मा ) 

लखनऊ। दिवंगत मुलायमसिंह यादव के नेतृत्व में कभी राष्ट्रीय पटल पर उभर कर आने वाली समाजवादी पार्टी बीते दो लोकसभा चुनावों में पांच सीटों के आंकड़े से आगे नहीं बढ़ पायी है। सपा के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल मुलायम परिवार के सदस्य ही सीटें जीत पाए थे, तो बसपा से गठबंधन के बावजूद 2019 में यादव परिवार के तीन सदस्‍य चुनाव ही हार गये थे। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्‍या समाजवादी पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में पांच सीटों के बैरियर को पार कर पायेगी। यह सवाल इसलिए ज्‍यादा प्रासंगिक हैं कि टिकट वितरण को लेकर समाजवादी पार्टी में जिस तरह की उहापोह देखने को मिली, ऐसा बीते तीन दशक में कभी नहीं हुआ था। कई सीटों पर दो से तीन बार टिकट बदले गये, आरोप लगा कि अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव को गंभीरता से नहीं लड़ रहे हैं। बहरहाल, पुराने साझेदारों जयंत चौधरी, ओमप्रकाश राजभर और पल्लवी पटेल के समाजवादी पार्टी से दामन छिटकने के बाद अखिलेश यादव एक बार फिर 2017 के विधानसभा चुनाव की तर्ज पर कांग्रेस के साथ है। आम आदमी पार्टी भी अप्रत्यक्ष रूप से सपा के समर्थन में है। अखिलेश ने 2024 के लिए पार्टी के परंपरागत एमवाई यानी मुस्लिम- यादव समीकरण से अलग रणनीति बनाई है और अब पार्टी की नजर गैर-यादव पिछड़े एवं दलित वोटरों पर है। यह वोटर या तो बसपा के वोटर थे या भाजपा के। सपा सबसे बड़ी सेंध भाजपा के कुर्मी वोटरों में लगा रही है। अब तक घोषित टिकटों में पार्टी ने सबसे ज्‍यादा नौ सीटों पर कुर्मी बिरादरी के प्रत्‍याशी उतारे हैं। 15 दलित वर्ग के प्रत्‍याशियों को भी टिकट दिये गये हैं। मेरठ और अयोध्‍या जैसी सामान्‍य सीट पर भी दलित प्रत्‍याशी उतारकर सपा ने भाजपा एवं बसपा दोनों खेमों में सेंधमारी की कोशिश में है। माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी की यह रणनीति सफल रही तो भाजपा को कई सीटों पर झटका लग सकता है। ऐसे संकेत पहले चरण के मतदान के बाद बिजनौर, रामपुर, नगीना जैसी लोकसभा सीटों से मिले भी हैं। ऐसा लग रहा है कि समाजवादी पार्टी 2024 में लोकसभा में दहाई के आंकड़े को छू भी सकती है। इसके पीछे दो कारण है। पहला भाजपा का अति आत्‍मविश्‍वास तथा दूसरा सपा का गैर यादव पिछड़े एवं दलित प्रत्‍याशियों पर भरोसा। भाजपा ने जीत जाने के वहम में उन प्रत्‍याशियों को भी टिकट दे दिया है, जिनका अपने क्षेत्र में जबर्दस्‍त विरोध हो रहा था। भाजपा को मोदी तथा राम मंदिर पर जरुरत से अधिक भरोसा है और उसके उम्मीदवारों को लग रहा है कि टिकट मिल जाना ही जीत की गारंटी है। उत्तर प्रदेश की दर्जनों सीट पर जनता में भाजपा प्रत्‍याशी को लेकर नाराजगी है, जिसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी को मिलना तय है। हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना को न्‍यूनतम करने के लिए सपा ने इस बार केवल चार मुसलमानों को टिकट दिया है। इसकी जगह कई मुस्लिम बहुल सीटों पर पिछड़े या दलित प्रत्‍याशी उतारे गये हैं। सपा को मुस्लिम एवं यादव वोटरों पर पूरा भरोसा है, लिहाजा उसने दूसरी जातियों का वोट जोड़ने के लिये उन जातियों के प्रत्‍याशी उतारे हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब समाजवादी पार्टी ने इतनी कम संख्‍या में यादव एवं मुसलमान प्रत्‍याशी उतारे हैं। 2014 में पार्टी ने 14 मुसलमान प्रत्‍याशियों को टिकट दिया था, लेकिन कोई नहीं जीत पाया। 2019 में बसपा से गठबंधन में मिली 38 सीटों पर चार प्रत्‍याशी उतारे थे, जिसमें तीन प्रत्‍याशियों आजम खान, एसटी हसन तथा शफीकुर्रहमान बर्क ने जीत हासिल की थी। इस बार उसके खाते में 62 सीटें होने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने केवल चार मुस्लिम प्रत्‍याशियों पर दांव खेला है। अब तक घोषित 57 उम्‍मीदवारों में सपा ने सबसे ज्‍यादा 29 टिकट पिछड़ा वर्ग को दिए है। 15 टिकट दलित, 9 टिकट सामान्‍य वर्ग को मिले। समाजवादी पार्टी ने जिस समीकरण से प्रत्‍याशी उतारे हैं, उसने भाजपा को भी मुश्किल में डाल रखा है। समाजवादी पार्टी को पश्चिम में कुछ सीटों पर भाजपा से नाराज क्षत्रिय वोटरों का लाभ भी मिल रहा है।  क्षत्रियों की भाजपा से नाराजगी तथा कांग्रेस से गठबंधन के चलते मुस्लिम वोटरों का एकजुट होना समाजवादी पार्टी के लिये फायदे का सौदा साबित होता दिख रहा है। गैर-यादव ओबीसी अगर भाजपा से छिटककर समाजवादी पार्टी की तरफ लौट आया तो आने वाले समय में भाजपा के लिए सियासी राह मुश्किल हो सकती है। दूसरी तरफ यह भी तय है कि इस बार अगर समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षानुरूप नहीं रहा तो फिर अखिलेश यादव के लिए समाजवादी पार्टी को बचाये रख पाना आसान नहीं रहने वाला है।

 

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