झाँसी -ललितपुर लोकसभा : अबकी पनघट की डगर कठिन क्यों?

झाँसी को न एयरपोर्ट मिला न एम्स, न मेट्रो न सम्मान 

झाँसी -ललितपुर लोकसभा : अबकी पनघट की डगर कठिन क्यों?

* 5 साल की उपेक्षा क़े दंश से पीड़ित दिखाई दे रहा मतदाता * पार्टी कार्यकर्त्ताओं में स्फूर्ति भी नदारद * कोठी की गतिविधियों क़े चलते पनपा निराशा भाव

झाँसी। चाहा क्या मिला, बेवफा तेरे प्यार में.....! ऐसी ही पंक्तियां कुछ इस समय झाँसी -ललितपुर लोकसभा क्षेत्र क़े भाजपाइयों क़े लबों पर हैं। कारण, मोदी की गारंटी क़े चलते बेचारों की भावनाओं पर सन्निपात हो गया है। कहाँ, सारे क़े सारे आशा लगाए थे कि इस बार प्रत्याशी कोठी से बाहर का आएगा लेकिन, संतरों क़े शहर नागपुर क़े 'महल' से कुछ ऐसी आंधी चली कि कोठी वाले ही फिर से सांय सांय सूं सूं करते हुए बेचारों क़े सिर पर आ गिरे। अब भाजपा ठहरी अनुशासित पार्टी, मोदी की गारंटी की लाज भी रखनी है और आगे की दावेदारी क़े लिए चेहरा भी बचाए रखना है सो मन मार क़े चेहरा दिखाने की होड़ क्षत्रपों में चल रही है। उधर कोठी मालिक 'अबकी बार, 5 लाख पार' क़े नारे क़े साथ " 400 पार" क़े नारे से होड़ करते हुए दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, 2019 में कोठी 3 लाख से ऊपर वोटों से जीती थी और जिनसे जीती थी, इस बार उन्हीं को झोली में डाल कर चल रही है तो जाहिर है, दिवास्वप्न तो आने ही हैं। पर, इस बार कोठी अँधेरे में भी है। कारण, मोदी की गारंटी है जिसके चलते प्रत्याशी अपने खिलाफ दौड़ रहे 'अंडर करंट' को ताड़ नहीं पा रहे हैं। नहीं देख पा रहे, कि इधर उधर क़े सारे दरबार मन मसोस क़े काम में तो लगे हैं पर न उनमें स्फूर्ति नजर आ रही है, न चैतन्यता। कार्यकर्त्ता भी अवाक से हैं। दौड़ रहे हैं, पर अंदर से शरीर में जान ही नहीं है। जिले क़े प्रथम नागरिक से लेकर शहर क़े प्रथम नागरिक तक यही चल रहा है। और चले भी क्यों नहीं। 5 साल में मजाल है जो कोठी से किसी की कोई सुनवाई हुई हो। अमां, 5 साल छोड़िये। अभी ज़ब चुनाव सिर पर हैं तब भी कोठी जीत को ले निश्चित है क्योंकि मोदी की गारंटी का भूत सिर पर है। लेकिन यह चुनाव है जनाब। और वो भी देश का सबसे बड़ा चुनाव और वो भी झाँसी -ललितपुर लोकसभा का है। जहां मतदाता या तो सिर पर बिठाता है या बिल्कुल झटक देता है। फिर इसमें फर्क नहीं करता कि आप चार बार क़े विजेता दिवंगत सुशीला नैयर हो या डॉ नारायणदत्त तिवारी या या फिर चार बार क़े देवतुल्य सहज पुरुष माने जाने वाले राजेंद्र अग्निहोत्री ज़ी। दूर क्यों, जाना, जनता ज़ब लेने पर आई तो वर्तमान गठबंधन प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री को मेयर तक नहीं बनने दिया। यही बात भाजपा प्रत्याशी को समझनी है। कार्यकर्त्ता की उपेक्षा, मतदाता को इग्नोर कर आप चुनाव भले जीत जाएं, दिल में नहीं उतर सकते। स्व. विश्वनाथ शर्मा ने ये बात समझ ली सो झाँसी से जीतने क़े बाद भी अगली बार हमीरपुर -महोबा सीट पर चले गए और फिर जीत भी गए। झाँसी में दोबारा तो उमा भारती को टिकट देने की हिम्मत पार्टी भी नहीं जुटा सकी। आपको मिला है तो उसकी वैल्यू समझो। चाहे चुने गए जनप्रतिनिधि हों या आम कार्यकर्त्ता। मतदाता हों या देवतुल्य पदाधिकारी, इज्जत करो भाई उनकी। मोदी की गारंटी, जनता क़े जज्बे से बड़ी नहीं है। माना कि इस बार मुकाबला वन टू वन का है यानी आमने सामने का। लेकिन यही संकट भी है। राम मंदिर, 370 और सीएए, क़े बावजूद इस बार तस्वीर बदल भी सकती है। क्योंकि मोदी क़े अलावा कोई फैक्टर है नहीं, इस चुनाव में। जहां मोदी नहीं चले, वहां डिब्बा गोल समझो। फिर न तो कार्यकर्त्ता बेवकूफ है, न मतदाता। आपने मतदाता से उसकी झांसी को छीन लिया, झाँसी रेलवे स्टेशन का नाम बदलवा कर। एक एम्स, एक एयरपोर्ट नहीं दे पाए, झाँसी को। या फिर कोई एक उपलब्धि बताइये, जो आपने झाँसी को दी हो। हां, एक पूर्व से मंजूर सीपरी ओवरब्रिज क़े लिए अपने पिताजी का नाम थोप दिया। कोई बताए कि झाँसी ललितपुर लोकसभा क़े लिए स्व. विश्वनाथ शर्मा की उपलब्धियां क्या रहीं? हमीरपुर -महोबा लोकसभा क्षेत्र को क्या दिया उन्होंने 5 साल क़े कार्यकाल में, जो उनक़े नाम पर सीपरी ओवरब्रिज का नाम रखा गया। पं. सुरेशचंद शास्त्री ने दुनिया में झाँसी का नाम ऊँचा किया। उनसे अधिक विद्वत विभूति झाँसी क्या पूरे बुंदेलखंड में नहीं हुई। उनक़े नाम पर रखा जाना चाहिए था ब्रिज का नाम। आपने झाँसी -ललितपुर क़े मतदाताओं क़े मन को नहीं पढ़ा सांसद ज़ी। हो सकता है आप फिर से सांसद बन भी जाएं, लेकिन एक लोकप्रिय जनप्रतिनिधि बनना अधिक महत्वपूर्ण है। आप पुनः सांसद बनने क़े बाद भी सिर्फ एक उद्योगपति ही रह पाएंगे, मतदाताओं क़े मनपति नहीं।

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