कृष्ण-सुदामा मित्रता की कथा सुन छलक उठे आंसू

  कृष्ण-सुदामा मित्रता की कथा सुन छलक उठे आंसू

भाटपार रानी,देवरिया।  कथावाचक पंडित घनश्यामानन्द  ओझा ने गोरखपुर महानगर के राम-जानकी पूरम में चल रहे श्रीमद्भागवत महापुराण कथा प्रेम यज्ञ के सातवें दिन सोमवार को सुदामा चरित्र का वर्णन किया।इस दौरान कृष्ण-सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुनकर श्रद्धालुओं की आंखों में आंसू छलक उठे।उन्होंने कहा कि सुदामा जी भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते। गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं।उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है तो यह सुनकर कृष्ण नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते हैं ।
 
उनकी दीन -दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंघासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां टूटी -फूटी झोपड़ी के जगह पर महल बना पाते हैं ।लेकिन सुदामा जी अपनी फूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं।कथावाचक ने कहा कि यदि कृष्ण व सुदामा जैसी असली मित्रता हो जाए तो कोई दुःखी नहीं रह सकता है। कथा के दौरान मुख्य यजमान पंडित दुर्गा प्रसाद तिवारी, ध्यान प्रकाश तिवारी, श्याम सुंदर तिवारी, रेखा दीक्षित, मीना दिवेदी, जूही, सुनीता, आशा, अवनीश, अनूप, उमेश मिश्रा , विष्णु कांत त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।
 
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