रामेस्वरम शिवलिंग स्थापना के समय रावण ने राम ( Ram)को विजयी भाव का दिया

मानस कथा: जब-जब असत्य पर सत्य की विजय की बात होती है, तब-तब हमारे मानस में राम ( Ram) रावण संग्राम का चित्र उभर कर आता है. हम यह भी जानते हैं कि प्रभु श्रीराम ने ही रावण का संहार किया था. ऐसे में यदि कोई कहे कि श्रीराम को विजय का आशीष रावण द्वारा ही दिया गया था तो शायद आप इसे स्वीकार नही करेंगे. पर मान्यता है कि रावण ने श्रीराम को युद्ध में विजयश्री का आशीष दिया था. आइए जानते हैं इसके पीछे की रोचक कथा.

रामजी का पूजन के आचार्य के लिए चिंतित होना
जब श्रीराम रावण के विरुद्ध युद्ध से पूर्व अपने आराध्य देवाधिदेव महादेव के ज्योतिर्लिंग के स्थापना और पूजन के विषय में सोचने लगे, तब उन्हें यह चिंता सता रही थी कि भला इस पूजा हेतु वो आचार्य रूप में किसे आमंत्रित करें. ऐसे श्रेष्ठ कार्य में कोई विद्वान आचार्य ही पूजन करवा सकता था. उनकी इच्छा थी कि यह कार्य कोई ऐसा व्यक्ति करे. जो वैष्णव और शैव दोनो परंपराओं का अनुपालक हो.

जामवंत जी का चिंता का हल ढूंढना
जब श्री राम को यह चिंता सताने लगी तो उन्होंने रीछराज जामवंत से सुझाव मांगा. जामवंत जी ने सोचा, क्यों न लंकाधिपति रावण को ही आचार्य रूप में बुलाया जाए क्योंकि ना तो रावण से बड़ा कोई शिवभक्त है और ना ही कोई विद्वान.

जामवंत जी का रावण को मनाना
जामवंत जी जोकि रावण के दादा जी के मित्र थे, इसलिए वे ही रावण को आचार्य रूप में बुलाने के लिए लंका गए. अपने दादा के मित्र के निवेदन को रावण ठुकरा नही सका और रावण सहर्ष ही आचार्य बनने के लिए तैयार हो गया.

रावण का आना और श्रीराम को विजयाशीष देना
रावण जानता था कि यह विग्रह स्थापना लंका विजय के उद्देश्य के लिए किया जा रहा है, पर तब भी उसने जामवंत जी के इस निमंत्रण को नहीं ठुकराया और विधि विधान से पूजन संपन्न कराया और पूजन के अंत में श्रीराम को विजयश्री का आशीष दिया.