व्यंग्य: गैर, गेरुआ और गरियाना

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त,

गुरु जी वह बंदा तो अपने ही धर्म का था। उसने गेरुए कपड़े पहनकर मानो हमारे सनातन धर्म का मजाक बना दिया। फिर किसी फिल्म में मैंने देखा कि अभिनेता गेरुए कपड़े पहनकर अभिनेत्री के साथ अश्लील डैंस कर रहा है। मानो बिना गेरुआ हुए उनका नाच अंडरग्राउंड हो जाता है। गेरुआ न हुआ चुल मचाने का शगल हो गया। – शिष्य ढुलमलुदास ने कहा।

गुरु ठनठनलाल ने कहा – देखो बेटा ढुलमुल गेरुआ का मजाक अपने धर्म के लोग उड़ाए तो कोई बात नहीं है। गैर-धर्म के लोग उड़ाए तो हमें उसका विरोध करना चाहिए। इसी को मसाला कहते हैं। मसाले से सादी दाल हो या सब्जी सब चटपटी बन जाती है। अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए हलचल करनी चाहिए।

शिष्य ढुलमुलदास गुरु को कन्फ्यूजियाने के लिए पूछा – वह तो ठीक है गुरु जी गैर-धर्म के लोग गेरुए रंग का मजाक कभी बेशर्म रंग कहकर तो कभी मुझे रंग दे गेरुआ गाकर उड़ाते हैं। लेकिन यही मजाक अपने धर्म के लोग भी अपने तरीके से उड़ाते हैं। क्या अपने धर्म के लोग इसका मजाक इसलिए उड़ा सकते हैं क्योंकि उनके दो हाथ, दो पैर, दो कान, दो आँख, एक नाक, एक मुँह है। यदि यही बात है तो गैर धर्म के लोग हमसे अलग कैसे हैं?

गुरु ठनठनलाल ने लंबी साँस खींचते हुए कहा – बेटा सवाल तो तुमने बढ़िया पूछा। किंतु तुमने इस पर शोध नहीं किया। कहने को तो गैर-धर्म के लोगों के दो हाथ, दो पैर, दो कान, दो आँख, एक नाक, एक मुँह तो होते हैं लेकिन हमसे अलग। जैसे उनके दो मुँह होते हैं। वे खाते यहाँ का है गाते वहाँ का है। वे हमारी गैया माँ को खाते हैं, जबकि हम उसे पूजते हैं। उनकी आँखों में सूरमा लगा होता है, हम पूरे बदन से सूरमा होते हैं। उनकी नाक काटी जा सकती है, जबकि हमारी नाक कतई नहीं। कहने के तो उनके भी दो हाथ होते हैं, लेकिन हमारी तरह जोड़ते नहीं फैलाते हैं। कुल मिलाकर हम उनसे अलग हैं और वे हमसे।

गैर धर्म की वकालत करने की जिद में अड़ा शिष्य ढुलमुलदास ने गुरु को चिढ़ मचने वाला सवाल पूछा – फिर भी गुरु जी क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अपने धर्म के लोगों को भी सनातन धर्म का मजाक उड़ाने का कोई अधिकार नहीं है? उनके लिए भी उसी तरह का बहिष्कार होना चाहिए जिस तरह दूसरे धर्मों के लोगों के साथ किया जाता है?

गुरु ठनठनलाल ने ढुलमुल को ढुलमुलाते हुए कहा – बेटा आजकल तुम प्रश्न बहुत करने लगे हो। लगता है देश से तुम्हारा दाना-पानी उठने वाला है। तुम यह क्यों भूल जाते हो कि माँ के लिए अपना बेटा प्यारा होता है। वह उसे छाती से चिपकाए रखती है। वह लात भी मारता है तो उसे प्यार समझती है। ठीक इसी तरह का संबंध होता है अपने धर्म के लोगों का सनातन धर्म से। जबकि गैर-बच्चे अपनी माँ को लात मारे तो यहाँ सहने के लिए हम चूड़ी पहने नहीं बैठे हैं। यह बदला हुआ देश है। घूस के मारने वाला देश है। मैं समझता हूँ कि तुम्हारी मोटी अकल में कुछ न कुछ घुसा ही होगा। नहीं घुसा है तो बता दे ट्रोल गैंग को तेरे पीछे छोड़ दूँ।