आंबेडकर ने समाज की गहराइयों में छिपे भेदभाव को उजागर किया। उनके लिए असली बदलाव सत्ता नहीं, संरचना तोड़ने से आता है।
वे मानते थे कि नीति बनाते समय आंकड़ों से ज़्यादा इंसानों को समझो। अगर हम पीड़ा नहीं जानते, तो समाधान भी खोखला होगा।
वे कहते थे कि समाज की सबसे बड़ी रुकावट जाति है। जब तक नीति बनाने वाले जाति को नहीं समझेंगे, तब तक बराबरी का सपना अधूरा रहेगा।
आंबेडकर ने आरक्षण को गरीबों की मदद नहीं, बल्कि सिस्टम में ऐतिहासिक अन्याय का जवाब माना। ये सामाजिक प्रतिनिधित्व और न्याय की कुंजी है।
आज की पॉलिसी तकनीक और टूल्स पर टिकी है, इंसान पीछे छूट गए हैं। आंबेडकर की सोच बताती है कि असली समाधान संवेदना से आता है।
हर 14 अप्रैल को फूल चढ़ाना आसान है। पर आंबेडकर को अपनाना है तो उनकी सोच को पॉलिसी में शामिल करना होगा। तभी असली बदलाव आएगा।
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