
कानपुर। किसान भाई फसलों के अवशेषों पर आग न लगाएं, क्योंकि आग लगाने से मिट्टी में नमी की कमी एवं मृदा तापमान में बढ़ोतरी होती है। इससे खेत की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ-साथ मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही फसलों के अवशेषों को जलाने से होने वाले दुष्परिणामों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है। यह बातें मंगलवार को सीएसए के वैज्ञानिक डॉ. शशिकांत ने कही।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीपनगर द्वारा ग्राम, औरंगाबाद विकासखंड मैथा में फसल अवशेष प्रबंधन योजना अंतर्गत एक दिवसीय प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. शशिकांत ने कृषकों से फसल अवशेषों में आग न लगाने की अपील की और कहा कि इसे खेतों में सड़ाकर खाद बनाएं जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।
केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने कहा कि किसान साथी फसल में अवशेषों का प्रयोग अपने आर्थिक समृद्धि के लिए कर सकते हैं। जिससे विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा फसल के अवशेषों पर मशरूम की गुणवत्ता युक्त खेती की जा सकती है। फसल अवशेष प्रबंधन के एफसीए गौरव शुक्ला ने कहा कि किसान भाई अपनी फसल की सुरक्षा के लिए अपने घर पर ही नीमास्त्र व दशपर्णी का निर्माण करें तथा फसल अवशेषों को मल्चिंग के रूप में प्रयोग करें।
फसल अवशेष प्रबंधन योजना के नोडल अधिकारी डॉ खलील खान ने कृषकों को बताया कि रोटावेटर, सुपर सीडर,हैप्पी सीडर तथा मलचर आदि कृषि यंत्रों के प्रयोग से फसल अवशेषों को खेतों में दवा देने से गेहूं की फसल अच्छी होती है। इस अवसर पर खेत में किसानों को गेहूं की फसल भी दिखाई गई, सभी किसान गेहूं फसल देखकर सहमत हुए कि अब वे फसल अवशेषों में आग नहीं लगाएंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम के प्रगतिशील किसान राम किशोर ने की। इस कार्यक्रम में ग्राम के प्रगतिसील किसान चरन सिंह, जितेंद्र, परशुराम, श्यामदर्शन एवं राजू सहित 60 से अधिक किसानों ने प्रतिभाग किया।