हाउसवाइफ का काम... कमाऊ बीवी से कम नहीं

 हाउसवाइफ का काम... कमाऊ बीवी से कम नहीं

दिल्ली : घर मां संभाल रही हो या पत्नी, उनके काम करने की शिफ्ट तय नहीं होती है. आज के खर्चीले दौरे में यह धारणा बढ़ रही है कि पत्नी कमाने वाली हो तो ज्यादा ठीक है. कुछ लोग हाउसवाइफ के काम को 'करती ही क्या हैं, इन्हें तो घर पर रहना है' की तरह कम करके आंकते हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने गृहिणी यानी हाउसवाइफ या घर का काम करने वाली महिलाओं को लेकर महत्वपूर्ण बात कही है. SC ने गृहिणी के योगदान को अमूल्य बताते हुए कहा कि घर पर एक महिला के काम का मूल्य उस व्यक्ति से कम नहीं है जो ऑफिस में काम करके वेतन लाता है. 

जस्टिस सूर्यन कांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि परिवार की देखभाल करने वाली महिला का विशेष महत्व है और उसके योगदान को मौद्रिक संदर्भ (रुपये-पैसे में) में मापना मुश्किल है.शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनलों और अदालतों को मोटर एक्सीडेंट के दावों के मामलों में गृहिणियों के काम और त्याग के आधार पर उनकी काल्पनिक आय की गणना करनी चाहिए.

पीठ ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा कि किसी गृहिणी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी परिवार के उस सदस्य की, जिसकी निश्चित आय है. कोर्ट ने साफ कहा कि अगर किसी गृहिणी के कामकाज की गणना एक-एक करके की जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनका योगदान उच्च स्तर का और अमूल्य है. वास्तव में, केवल रुपये-पैसे के संदर्भ में उनके योगदान की गणना करना मुश्किल है. 

एक्सीडेंट में गृहिणी की हुई मौत तो...

2006 में एक सड़क दुर्घटना में उत्तराखंड की एक महिला की मौत हो गई थी. इससे जुड़े मोटर दुर्घटना मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की है. दरअसल, महिला जिस गाड़ी में यात्रा कर रही थी, उसका बीमा नहीं था. उसके परिवार को मुआवजा देने का दायित्व गाड़ी मालिक पर आ गया. दावा किया गया तो ट्रिब्यूनल ने महिला के परिवार (उसके पति और नाबालिग बेटे) को 2.5 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने का फैसला दिया. परिवार ने ज्यादा मुआवजे के लिए उत्तराखंड हाई कोर्ट में अपील की लेकिन 2017 में उनकी याचिका खारिज कर दी गई.
गृहिणी और दिहाड़ी मजदूर

हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि चूंकि महिला एक गृहिणी थी इसलिए मुआवजे को उसकी जीवन प्रत्याशा और न्यूनतम काल्पनिक आय के आधार पर तय किया जाना था. हाई कोर्ट को ट्रिब्यूनल के आदेश में कोई त्रुटि नहीं मिली जिसमें महिला की अनुमानित आय को दिहाड़ी मजदूर से कम माना गया था. 

हालांकि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के दृष्टिकोण पर नाराजगी जताई. बेंच ने कहा कि एक गृहिणी की आय को दिहाड़ी मजदूर से कम कैसे माना जा सकता है? हम इस तरह के अप्रोच को स्वीकार नहीं करते हैं. बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि गृहिणी अपना कितना समय कामकाज में लगाती है. आखिर में बेंच ने 6 हफ्ते के भीतर परिवार को 6 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश सुनाया.

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