विश्व अस्थमा दिवस पर शिविर लगाकर किया जागरूक

आयुर्वेदिक उपायों से किया जा सकता है अस्थमा को कंट्रोल - डा अवनीश पाण्डेय

विश्व अस्थमा दिवस पर शिविर लगाकर किया जागरूक

ब्रजेश त्रिपाठी

प्रतापगढ़। हर साल मई माह के पहले मंगलवार को दुनिया भर में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है, इसे दमा नाम से भी जाना जाता है। जनमानस को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डा जयराम यादव के निर्देशन में आयुर्वेद विभाग द्वारा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन छितपालगढ़ बाजार में किया गया। राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय छितपालगढ़ के प्रभारी चिकित्साधिकारी डा अवनीश पाण्डेय द्वारा इस शिविर में 55 रोगियों का परीक्षण कर लोगों को अस्थमा के लक्षण और बचाव के उपाय बताये गये।डा अवनीश ने बताया कि अस्थमा फेफड़ों में होने वाली गंभीर बीमारी है, जिसका खतरा लगभग सभी उम्र के लोगों में देखा जा रहा है।अस्थमा के रोगियों को सांस नलियों के आसपास सिकुड़न से सांस लेना कठिन हो जाता है।विश्व अस्थमा दिवस 2024 के उपलक्ष्य में, ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जीआईएनए) ने “अस्थमा शिक्षा सशक्तीकरण” विषय का चयन किया है ।

वर्तमान में वायु प्रदूषण को देखते हुए अस्थमा के रोगियों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। घबराहट, बेचैनी, थकना, सीने में दर्द, सांस का फूलना, लगातार खांसी होना, सीने में जकड़न आदि यह सब अस्‍थमा के लक्षण हैं।अस्थमा के रोगी के लिए तले हुए खाद्य-पदार्थ, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, ठंडे पेय आदि का सेवन खतरनाक साबित हो सकता है। शराब, मसालेदार खाद्य पदार्थ, धूम्रापन ये दमा के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं।फास्ट फूड में भरपूर मात्रा में सैचुरेटेड फैट, एडिटिव्स और सोडियम होता है। यह अस्थमा से पीड़ित लोगों में लक्षणों को और बढ़ावा दे सकता है।अस्थमा का परमानेंट इलाज भले ही मुश्किल हो, मगर आयुर्वेद की मदद से इसके लक्षणों पर काबू पाया जा सकता है।

आयुर्वेद की मदद से बीमारी का प्रबंधन किया जा सकता है।आयुर्वेद एक ऐसा तरीका है, जिससे अस्थमा के रोगियों को दर्दनाक स्थिति से राहत और आराम मिलता है।जीवनशैली में बदलाव में के लिए दमा के रोगियों को एलर्जी, धुआँ, अगरबत्ती और मच्छर भगाने वाले कॉयल, कीटनाशक स्प्रे, परफ्यूम और धूल से बचना चाहिए।बहुत अधिक समय तक एसी और कूलर में रहने से बचें।अवनीश के अनुसार आयुर्वेदिक चिकित्सा में अस्थमा को ‘तमक श्वास कहा जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा की एक समग्र प्रणाली है। यह मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन पर जोर देती है। औषधीय उपचार, आहार, जीवनशैली में बदलाव, पंचकर्म से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इससे दोष संतुलित होने के साथ-साथ सूजन में कमी आती है और श्वसन प्रणाली मजबूत होती है।

अड़ूसा, तुलसी, मुलेठी, कालीमिर्च, इलायची,दालचीनी,अदरक इनमे सबसे प्रभावी हैं।वरिष्ठ चिकित्सक एवं आरोग्य भारती के सचिव डा भरत नायक ने बताया कि अस्थमा के रोगियों को आम तौर पर आसानी से पचने वाले और पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेने चाहिए। श्वसन तंत्र को मजबूत करने और फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार करने वाली तकनीकें भी अपनाना चाहिए।प्रणायाम,अनुलोम विलोम जैसे गहरी सांस लेने के व्यायाम श्वसन मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते हैं।शिविर में डा अवनीश पाण्डेय, डा भरत नायक, मृत्युंजय यादव, सतीश कुमार सिंह, रामचंद्र मौर्य, मो० अकरम, अशोक कुमार मौजूद रहे।

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