2024: मोदी की गारंटी में भी तड़प रही ‘विकास की मछली’!

जौनपुर और वाराणसी के क्षेत्रों को मिलाकर बना है मछलीशहर संसदीय सीट

2024: मोदी की गारंटी में भी तड़प रही ‘विकास की मछली’!

रवि गुप्ता

  • बीजेपी के बीपी सरोज, सपा की प्रिया सरोज और बसपा के कृपाशंकर सरोज में त्रिकोणीय  संघर्ष
  • 2014 से अब तक बीजेपी का कब्जा, पूर्व में सपा का दबदबा, बसपा ने खोला था खाता
  • क्षेत्र में पासी, सोनकर, धोबी समुदाय निर्णायक वोटर, मुस्लिम-यादव गठजोड़ भी मजबूत
  • मोदी के वाराणसी सीट से सटे होने पर भी मछलीशहर संसदीय क्षेत्र नहीं पकड़ सका विकास की गति
  • बड़ी संख्या में क्षेत्र के बेरोजगार युवा मुंबई, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व नोएडा पलायन को मजबूर
  • औद्योगिक विकास से कोसों दूर, परंपरागत खेती-बाड़ी और कारोबार पर निर्भर है क्षेत्र की जनता

लखनऊ। 2024 के लोकसभा चुनाव की शहनाई वैसे तो बज चुकी है, अब तो पहले चरण का चुनाव भी होने वाला है और तकरीबन हर राजनीतिक पार्टी ने अपने बचे-खुचे सीटों पर उम्मीदवारों के नाम भी तय कर दिये और साथ ही आधिकारिक ऐलान भी कर दिया है। यूपी की बात करें तो पूर्वांचल की एक ऐसी सीट रही जिसको लेकर हर कोई ऊधेड़बुन में रहा कि आखिर में भाजपा के बाद अब सपा-कांग्रेस गठजोड़ किस उम्मीदवार को टिकट देगा। अंत में मछलीशहर लोकसभा सीट पर सपा ने अपनी ही पार्टी के पूर्व सांसद रहे और मौजूदा समय में इसी सीट के केराकत विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक तूफानी सरोज की बेटी प्रिया सरोज की उम्मीदवारी पर अपनी राजनीतिक मुहर लगाई। जबकि बीजेपी ने लगातार दूसरी बार इस सीट से निवर्तमान सांसद बीपी सरोज को चुनावी मैदान में उतारा और वहीं बसपा ने पंजाब कॉडर के पूर्व आईएएस रहे कृपाशंकर सरोज को हाथी चुनाव चिन्ह सौंपकर अपनी दावेदारी पेश की।

वैसे बता दें कि अभी तक 2014 से लेकर अब तक बीजेपी का ही इस सीट पर कब्जा रहा, मगर इस क्षेत्र के कुछ वरिष्ठजनों की मानें तो पीएम मोदी के वाराणसी संसदीय सीट से सटे होने के बावजूद मछलीशहर क्षेत्र में विकास की मछली आज भी तड़पती हुई नज़र आ रही। गौर हो कि जौनपुर और वाराणसी क्षेत्रों को मिलाकर मछलीशहर सुरक्षित संसदीय सीट को बनाया गया है। जातीय आंकड़ों पर गौर करें तो यहां पर सबसे अधिक पासी यानी सरोज, सोनकर, धोबी (कन्नौजिया), निषाद और उसके बाद यादव, मुस्लिम, ठाकुर, बनिया, वर्मा आदि अन्य जातियां शामिल हैं।

लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिवेश में देखें तो चूंकि बीजेपी, सपा और बसपा ने इस बार के लोकसभा चुनाव में एक ही वर्ग यानी सरोज-पासी समुदाय से जुड़े उम्मीदवार को उतारा है तो मुकाबला त्रिकोणीय होना लाज़िमी है। वहीं यहां के स्थानीय राजनीतिक जानकारों की मानें तो चूंकि मछलीशहर सीट को यहां पर न तो जौनपुर शहरी सीट और न ही वाराणसी सीट से किसी प्रकार का ‘पॉलिटिकल बैकअप’ नहीं मिल पाता तो ऐसे में सदन में इनके चुने गये जनप्रतिनिधियों की जनसमस्या को लेकर सुनवाई भी समय पर नहीं हो पाती जिससे यहां पर न तो अब तक किसी प्रकार का औद्योगिक विकास हो पाया और न ही कोई अन्य सतत विकास दिखा।

इससे इतर इस क्षेत्र के अधिकांश लोेग खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं और तमामजन परंपरागत कल-कारोबार से जुड़कर जैसे-तैसे करके अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। शायद इसीलिये यहां के ज्यादातर युवा काम की तलाश में महाराष्ट्र-मुंबई-पुणे, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा या फिर बंगलुरू और कोलकाता की ओर पलायन को मजबूर रहते हैं।

हालांकि यहां पर शिक्षा का उन्नति तो दिखती है, मगर वो भी इस रूप में की कि यहां पर कुछेक शिक्षण संस्थानों को छोड़ दिया जाये तो अधिकांश प्रतियोगी और एकेडमिक छात्र-छात्रायें इलाहाबाद विवि या फिर बीएचयू यूनिवर्सिटी की ओर उच्च और शोधपरक पठन-पाठन के लिये निकल जाते हैं...और यदि सफल हो गये तो फिर इक्का-दुक्का ही यहां पर लौटकर आते हैं तो ऐसे में मछलीशहर संसदीय क्षेत्र में शैक्षिक ‘बे्रन ड्रेन’ भी प्रचलन कहीं अधिक देखने को मिलता है। रेलवे, रोडवेज और स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी मछलीशहर संसदीय सीट को लेकर पूर्व और वर्तमान में कई घोषणायें होती आई हैं, मगर मौजूदा हाल में जमीनी हकीकत इससे कहीं जुदा है।  

 
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