सड़क सुरक्षा: हाईवे पर बटी जिम्मेदारी, हादसे होते जा रहे बारी-बारी!

एनएचएआई, एसएचएआई, पीडब्ल्यूडी, यूपीडा के अधिकार क्षेत्र में बंटी है हाईवे की सड़कें

सड़क सुरक्षा: हाईवे पर बटी जिम्मेदारी, हादसे होते जा रहे बारी-बारी!

रवि गुप्ता

  • हाईवे पर हादसों के प्रमुख कारक हैं ओवर स्पीडिंग, चालक को झपकी आना, ड्रंकन ड्राइविंग व रॉन्ग कट
  • संबंधित क्षेत्र का एआरटीओ प्रवर्तन तय करता है हाईवे पर स्पीड लिमिट, केवल कागजों तक सीमित
  • बीते रविवार यूपी-बिहार हाईवे पर एक रॉन्ग कट ने उजाड़ी लखनऊ के निवासी की जिंदगी, परिवार बदहवास
  • रॉन्ग कट से आई स्कॉर्पियों ने सामने से मारी कार में टक्कर, केजीएमयू ट्रामा में जिंदगी से जूझता सत्यम

लखनऊ। कहने को तो केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की अगुवाई में अब एनएचएआई टीम अमरीका व यूरोप के देशों को पीछे छोड़ते हुए एक दिन में रिकॉर्ड मीटर तक भारत में हाईवे पर सड़कों का निर्माण कर रही है, मगर इसके साथ यह एक दाग भी जुड़ता जा रहा है कि जैसे-जैसे देश-प्रदेश में हाईवे, एक्सप्रेसवे आदि प्रमुख सड़क मार्गों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसी के तहत तकरीबन हर दिन कहीं न कहीं इन पर अनापेक्षित सड़क हादसे भी होते जा रहे हैं जिसका कोई ठोस जवाब न तो जिम्मेदार विभागों के पास है और न ही फील्ड पर काम करने वाले अफसरों की टीम के पास है।

बीते रविवार को इंदिरानगर तकरोही क्षेत्र निवासी सत्यम मिश्रा (35) जोकि किराये पर अपनी पत्नी सोनी और दो छोटे बच्चों तीन साल की बिटिया और एक साल के बेटे के साथ रहता था...वो अपनी खुद की स्विफ्ट डिजायर कार से किसी निजी काम से सुबह सात बजे कमरे से पटना के लिये निकला। उसी दिन दोपहर तीन बजे के करीब अचानक उसकी पत्नी के फोन पर सत्यम का कॉल आता है, कार हादसे का शिकार हो गई इतना सुनते ही उसके होश उड़ गये। सत्यम का फोन बंद हो गया, फिर जैसे-तैसे करके उसके कुछ जानने वाले पटना में थे जो यूपी-बिहार हाईवे कोइलवर के पास पहुुंचे, सत्यम बेहोश और घायल अवस्था में पड़ा था। मगर उसने इतनी हिम्मत दिखायी कि उस सुनसान हाईवे पर उसने रॉन्ग साइड से आई उसे स्कॉर्पियो गाड़ी की पूरी फोटो अपनी मोबाइल में ले ली थी जोकि बाद में सुबूत के काम आ रही है।

बहरहाल, आमने-सामने की टक्कर में दोनों गाड़ियों बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं, सत्यम को पहले वहां नजदीकी जिला अस्पताल ले जाया गया और फिर वहां से बनारस को रिफर कर दिया गया। वहां हालत बिगड़ती गई तो फिर परिजन उसे लखनऊ केजीएमयू ट्रामा सेंटर ले आये। अब 72 घंटे बीत चुके हैं, सत्यम को होश नहीं आया, डॉक्टर बताते हैं कि नीचे के हिस्से में कई जगह फै्रक्चर है और पसलियों में हवा भर आयी है, पांच यूनिट खून भी दिया गया और हालत स्थिर नहीं है। दूसरी तरफ सत्यम जोकि मूल निवासी हरदोई का है, उसकी मां बेसुध हैं, पत्नी हिम्मत करके एक साल के बच्चे को लेकर केजीएमयू कैम्पस में 40 डिग्री की गर्मी में समय काट रह है, बिटिया को पड़ोसी के यहां छोड़ दिया है और परिजन व कुछ मित्रजन जैसे-तैसे करके मदद कर रहे हैं। पीड़ित परिजनों का कहना रहा कि सत्यम एक दशक से कार-गाड़ी चलाता आ रहा है और उसके वाहन संबंधी सारे पेपर पूर रहते हैं, क्योंकि वो इसको लेकर हमेशा सजग रहता है। साथ ही यह भी सवाल भी करते हैं कि जब सत्यम हाईवे पर 70-80 की स्पीड में अपनी साइड चल रहा था तो फिर यकायक रॉन्ग साइड से आयी कोई गाड़ी सीधी टक्कर मार दे तो किसकी चूक मानी जाये...अब जो भी हो, उनका जीवन तो उजड़ गया और सत्यम घर में अकेला कमाने वाला था।

टोल टैक्स लेने तक सीमित, सड़क सुरक्षा पर बंटे विभाग!

हैरानी की बात यह है कि चाहे नेशनल हो या फिर स्टेट हाईवे, इनसे गुजरने वाले वाहनों से केवल टोल टैक्स वसूलने तक ये संस्थायें सीमित हैं, जब बात सड़क सुरक्षा की आती है तो सब अपने-अपने अधिकार क्षेत्र की बात करने लगते हैं। जानकारी के तहत यूपी की बात की जाये तो यहां पर पहले एक्सप्रेस वे जोकि यूपीडा के तहत आता है, फिर नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, एमडीआर (मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड), ओडीआर (अदर डिस्ट्रिक्ट रोड) व वीआर (विलेज रोड) शामिल है, इनमें से एमडीआर, ओडीआर व वीआर का अधिकांश हाईवे का हिस्सा स्टेट के पीडब्लयूडी विंग के तहत आता है। यानी किसी हाईवे पर यदि कोई वाहन चालक चले तो उसे उपरोक्त नियमों के पथ पर चलते हुए आगे बढ़ना होता है, ऐसे में यदि कोई हादसा हो जाये तो उसे त्वरित मदद मिलना मुश्किल है क्योंकि हाईवे पर जिम्मेदारियों का बंटवारा कुछ ज्यादा ही बड़ा है, कोई एकीकृत व्यवस्था नहीं है।

तमिलनाडु के तर्ज पर यूपी में भी बने रोड सेफ्टी एसटीएफ यूनिट...!

यूपी एक बड़ी आबादी वाला राज्य है और लम्बा रोड नेटवर्क वाला राज्य है, ऐसे में कई राज्यों की सीमाओं को भी यह छूता है। मगर हाईवे अथॉरिटी के नाम पर इस वृहद क्षेत्र व आबादी वाले राज्य का रोड सेफ्टी सरकारी मैकेनिज्म एक छोटे राज्य की ही तरह है। जबकि इससे कहीं छोटे तमिलनाडु राज्य में अलग से रोड सेफ्टी एसटीएफ यूनिट, जिसका प्रमुख एडीजी स्तर का होता है, उसके सदस्योें में चीफ इंजीनियर व एडिशनल लेवल के अधिकारी होते हैं। वहीं यूपी में रोड सेफ्टी जैसे अति अहम विंग को परिवहन विभाग में ही मर्ज कर दिया गया है, यहीं मुख्यालय पर ही एडिशनल लेवल का एक अधिकारी इसका प्रमुख होता है, जिसके जिम्मे पहले से ही तमाम विभागीय कार्यों का बोझ या फिर यूं कहे कि दबाव होता है। हालांकि सूबे के परिवहन विभाग ने एक कदम आगे बढ़ते हुए रोड सेफ्टी की महत्ता के मद्देनजर अपने विभाग के निहित सभी 75 जनपदों के लिये अलग से एआरटीओ रोड सेफ्टी पदों के सृजन का प्रस्ताव प्रेषित कर रखा है, जोकि अभी भी शासन स्तर पर विचाराधीन है। वैसे बता दें कि यही यूपी है, जब 90 के दशक में सूबे में कानून व्यवस्था बेपटरी हो रही थी, तो पुलिस प्रशासन की डिमांड और जनहित में तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने अलग से एसटीएफ यूनिट की नींव रखी थी जोकि आज भी अति प्रासंगिक है, तो ऐसे में रोड सेफ्टी को लेकर ऐसा क्यों नहीं हो सकता है जबकि आये दिन हाईवे पर सड़क हादसों की संख्या बढ़ती जा रही है।

सड़कों की क्षमता 100 से ज्यादा नहीं, पर वाहनों की स्पीड 200 के पार..!

सड़क सुरक्षा जानकारों की मानें तो वैसे भी भारतीय परिवेश में यदि यूपी की बात करें तो यहां पर हाईवे पर सड़कों की जो बनावट है उस पर स्पीड लिमिट 100 से ज्याद नहीं है, पर नित नये लॉन्च होते जा रहे लग्जरी वाहनों में लगे स्पीडोमीटर की सुईयों को देखें तो वो सीधे 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार को लेकर सड़कों पर फर्राटा भरती हुई नजर आती हैं। बता दें कि कोई भी हाईवे जब किसी जनपद से होकर गुजरता है तो वहां पर वाहनों की स्पीड लिमिट तय करने की विभागीय दायित्व संबंधित एआरटीओ प्रवर्तन की होता है जोकि एमवी एक्ट में भी उल्लखित है, मगर उसका सड़कों पर अनुपालन कहीं पर भीं नहीं दिखता। वजह साफ है, कि आरटीओ-एआरटीओ प्रवर्तन के जिम्मे रोड इनफोर्समेंट के काम के अलावा अन्य कई कामों की पूरी लिस्ट होती है जोकि उसे हर हाल में पूरा करना होता है, जैसे वीआईपी मूवमेंट को देखना व अन्य काम आदि।

जनपदवार हादसों की संख्या है, पर हाईवे पर कितनी नहीं पता!

विभागीय जानकारों से जब आये दिन हाईवे पर होते जो सड़क हादसों के बारे में विवरण मांगा गया तो यही पता चला कि दरअसल, यातायात निदेशालय से भी सड़क दुर्घटनाओं की संख्या का पूरा डेटा उन्हें मिलता है। उसमें भी केवल जनपदवार हादसों की संख्या चिन्हित रहती है, हाईवे पर होने वाले हादसों को लेकर अलग से कोई अपडेट नहीं होता है। वो भी जो सड़क हादसे स्थानीय पुलिस की पकड़ में आ गये और एफआईआर दर्ज हो गई तो उसका तो अपडेट रहता है, मगर जो किसी कारणवश पुलिस के रिकॉर्ड में नहींं आ पाते हैं, उनका कोई अता-पता नहीं होता।

रॉन्ग कट पर एफआईआर दर्ज कराना है: एनएचएआई

वहीं हाईवे आदि पर रॉन्ग कट खत्म करने के सवाल राजधानी स्थित एनएचएआई के डिप्टी जीएम टेक्निकल एमपी सिंह ने तरूणमित्र टीम से कहा कि, यह एक अति गंभीर मसला है जिसके जमीनी क्रियान्वयन पर मंथन चल रहा है। आगे कहा कि प्रदेश के चीफ सेके्रटरी सर का आदेश है कि ऐसे हाईवे पर जो भी बिना अनुमति के रॉन्ग कट बनाये गये हैं, वहां पर मुआयना कराते हुए संबंधित के खिलाफ तुरंत ही एफआईआर दर्ज करायी जाये। 

Tags: lucknow

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