मोदी सरकार : दुष्कर होता 400 पार का लक्ष्य

भाजपा नेतृत्व के चेहरे पर चिंता की लकीरें

मोदी सरकार : दुष्कर होता 400 पार का लक्ष्य

कमजोर विपक्ष ही भाजपा का एकमात्र सिंबल

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के मतदान का दूसरा दौर शुरु होने से पहले एक बात साफ़ हो चली है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एनडीए के 400 पार का नारा शायद ही ज़मीन पर उतर सके। चुनाव नजदीक आने के साथ ही जमीनी हकीकत सामने आने लगी है। जमीन पर ऐसे राजनीतिक हालात नहीं दिख रहे, जैसे फरवरी के पहले हफ्ते तक नजर आ रहे थे। हालांकि अभी भी जमीन पर मोदी उतने कमजोर नजर नहीं आ रहे, जितना विपक्ष। लेकिन ये जरुर है कि 2019 जैसे हालात भी नहीं हैं, जब साफ तौर पर नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी के पक्ष में लहर चल रही थी। राम मंदिर बनने और सीएए लागू होने के बावजूद भाजपा को अपना पुराना प्रदर्शन ही दोहराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। सच्चाई ये है कि विपक्ष जमीन पर उतना कमजोर नहीं है, जितना भाजपा उसे समझ रही थी। लेकिन विपक्षी नेताओं की कमजोरी यही है किया वह इस सच्चाई पर भरोसा नहीं कर पा रहा है, यही वजह है कि जमीन पर एंटी इन्कमबेंसी के बावजूद विपक्ष उसे लहर में नहीं बदल पा रहा। इसीलिए सारी बात के बावजूद फिलहाल ऐसे हालात नजर नहीं आ रहे कि भाजपा हार जाए। लेकिन विपक्ष अगर मतदान के अंतिम चरण के पहले तक मैदान में मजबूत मनोबल बनाए रखता है तो वह अभी भी बाकी चरणों में मोदी सरकार को तगड़ी टक्कर दे सकता है। मोदी सरकार भले ही भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष को घेर रहा हो, लेकिन ये आम मतदाता समझ चुका है कि सिर्फ विपक्षी नेताओं पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर छापेमारी की जा रही है और उन्हें जेल भेजा जा रहा है। आम लोग भी अब समझने लगे हैं कि ये कैसे संभव हैं कि सभी भ्रष्ट नेता सिर्फ विपक्ष में ही हों या फिर भाजपा में शामिल होकर वे दूध के धुले बन जाएं। भ्रष्टाचार का मोदी सरकार का नारा इसीलिए उस तरह नहीं चल रहा, जैसा 2014 में चल रहा था। मतदाताओं को यह भी समझ आ रहा है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी सियासी कारणों से हो रहा है। भले ही कांग्रेस नेता अपनी पार्टी को मजबूत न मान रहे हों लेकिन कांग्रेस के नेता जिस तरह से ध्रुवीकरण और भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ बेरोजगारी, महंगाई के मुद्दे उठा रहे हैं, उन्हें मतदाता समझने की कोशिश कर रहा है। सच्चाई यह है कि भाजपा को सबसे बड़ा फायदा अगर कोई मिल रहा है तो वह विपक्ष के कमजोर मनोबल का है। पीएम मोदी के चार सौ पार नारे के बाद विपक्ष दबाव में है। विपक्ष में तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, नवीन पटनायक जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप हैं जो अकेले अपने दम पर भाजपा को अपने राज्यों में बढ़ने से रोकते हैं। ये स्थिति अगर सामूहिकता में बदल जाए तो भाजपा को लेने के देने पड़ सकते हैं। खुद कांग्रेस की ये स्थिति है कि कई बड़े नेता चुनाव लड़ने से ही कन्नी काट रहे हैं। कांग्रेस अब तक प्रियंका के रायबरेली और राहुल गाँधी के अमेठी से चुनाव लड़ने का निर्णय नहीं ले पा रही, ऐसी चीजों से ही भाजपा को ही मजबूती मिलती हैं।अगर कांग्रेस सहित विपक्ष के नेता एकजुट होकर जमकर लड़ते नजर आए तो आने वाले चरणों में स्थिति में बदलाव आ सकता है। कांग्रेस और बाकी विपक्ष में जिन मुद्दों पर आपस में मतभेद हैं भी तो उन पर बयानबाजी से बचें। अगर ऐसा हुआ तभी जनता में भी विपक्ष के प्रति भरोसा पैदा होगा।

 

 

 

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