सूरत लोकसभा सीट पर मुकेश दलाल की जीत

 सूरत लोकसभा सीट पर मुकेश दलाल की जीत

लोकसभा चुनाव: लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है. और दूसरे चरण की 89 सीटों के लिए वोटिंग 26 अप्रैल को होगी. नतीजे तो 4 जून को आएंगे लेकिन उससे पहले ही हर पार्टी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही है. मगर नतीजों से पहले बीजेपी के लिए गुजरात से Good News आई है. जहां वोटिंग और Counting से पहले ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खाता खुल गया है.
सूरत में वोटिंग से पहले बीजेपी की जीत
आमतौर पर लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया में किसी सीट पर वोटिंग होने के बाद, एक निश्चित तारीख को यानी काउंटिंग के दिन नतीजे आते हैं. इस बार चुनाव आयोग ने नतीजों के लिए 4 जून की तारीख घोषित की है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि वोटिंग से पहले ही BJP के एक उम्मीदवार ने जीत दर्ज कर ली है. निर्वाचन अधिकारी ने जीत का प्रमाण पत्र भी सौंप दिया है.

मुकेश दलाल ने निर्विरोध जीत दर्ज की

अब आपको लगेगा कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? और कोई उम्मीदवार वोटिंग से पहले भला कैसे जीत सकता है. तो पहले आपको बताते हैं कि ये सब कहां हुआ है. दरअसल, लोकसभा चुनाव का ये दिलचस्प मामला सूरत लोकसभा सीट का है. इस सीट से BJP के उम्मीदवार मुकेश दलाल ने निर्विरोध जीत दर्ज की है.

- गुजरात की 26 लोकसभा सीटों पर 7 मई को मतदान होना है, इनमें सूरत लोकसभा सीट भी शामिल है.- लेकिन 22 अप्रैल को ही BJP उम्मीदवार मुकेश दलाल को विजयी घोषित कर दिया गया.
- विजयी उम्मीदवार मुकेश दलाल को जीत का प्रमाण पत्र भी निर्वाचन अधिकारी ने सौंप दिया.

BJP का खाता खुल गया है..

इस जीत के साथ लोकसभा चुनाव में BJP का खाता खुल गया है, बाकी सीटों पर नतीजे 4 जून को आएंगे.अब आप सोच रहे होंगे, कि ये सब कैसे हो गया ? बिना वोटिंग कोई उम्मीदवार भला कैसे विजयी घोषित कर दिया गया. तो अब आपको इसका पूरा Scenario समझाते हैं. सूरत लोकसभा सीट पर BJP कैंडिडेट मुकेश दलाल समेत कुल 9 उम्मीदवार मैदान में थे. इनमें एक कैंडिडेट कांग्रेस के निलेश कुंभानी भी थे. चुनाव अधिकारी ने कांग्रेस कैंडिडेट निलेश कुंभानी का नामांकन फॉर्म ही रद्द कर दिया. क्योंकि, निलेश कुंभानी अपने तीन में से एक भी प्रस्तावक को चुनाव अधिकारी के सामने पेश नहीं कर पाए.

कांग्रेस कैंडिडेट निलेश कुंभानी का नामांकन फॉर्म ही रद्द

दरअसल, बीजेपी ने निलेश कुंभानी के फॉम में उनके तीन प्रस्तावकों के साइन को लेकर सवाल उठाए थे. निलेश कुंभानी के प्रस्तावकों में उनके बहनोई, भांजे और पार्टनर के साइन होने का दावा किया गया था. लेकिन एक दिन पहले ही तीनों ने एफिडेविट देकर कहा था कि निलेश कुंभानी के फॉर्म में उनके साइन ही नहीं हैं. प्रस्तावकों के दावे के बाद चुनाव अधिकारी ने निलेश कुंभानी को एक दिन का समय दिया था, लेकिन उनके साथ एक भी प्रस्तावक चुनाव अधिकारी के सामने नहीं पहुंचा.

क्या कहती है चुनाव आयोग की हैंडबुक

कांग्रेस उम्मीदवार निलेश कुंभानी का नामांकन रद्द हुआ तो बाकी उम्मीदवारों ने सूरत सीट से अपना नाम वापस ले लिया. जिसके बाद सूरत लोकसभा सीट पर अकेले उम्मीदवार मुकेश दलाल ही बचे थे. इस तरह वोटिंग से पहले ही बीजेपी के मुकेश दलाल चुनाव जीत गए. भारत के चुनाव आयोग की Handbook में इस बात का जिक्र है, कि अगर किसी सीट पर एक ही उम्मीदवार है. तो नाम वापस लेने की तय सीमा के एक घंटे बाद इकलौते उम्मीदवार को बिना वोटिंग कराए विजयी घोषित किया जा सकता है. और ऐसा ही बीजेपी के उम्मीदवार मुकेश दलाल के साथ हुआ. 

जीत का प्रमाण पत्र सौंप दिया गया..

जब सूरत लोकसभा सीट पर वही इकलौते उम्मीदवार बचे तो उन्हें जीत का प्रमाण पत्र सौंप दिया गया. अब आपको बताते हैं कि वोटों की गिनती से पहले बीजेपी के लिए जीत का खाता खोलने वाले मुकेश दलाल कौन हैं? मुकेश दलाल गुजरात के सूरत BJP के महासचिव हैं, और मोढ वणिक समुदाय से आते हैं. मुकेश दलाल सूरत नगर निगम के पूर्व स्थायी समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इसके अलावा लंबे समय तक प्रदेश स्तर पर काम कर चुके हैं. मुकेश दलाल सूरत में अच्छी पकड़ रखते हैं, यहीं से मुकेश दलाल 3 बार पार्षद और 5 बार स्थायी समिति के अध्यक्ष रहे हैं.

कांग्रेस ने सवाल उठाए..

हालांकि, बीजेपी के सूरत लोकसभा सीट जीतने के बाद कांग्रेस ने इसे मैच फिक्सिंग बताया है, और मुकेश दलाल की जीत पर सवाल उठाए हैं.
जबकि बीजेपी नतीजों से पहले खाता खुलने से खुश है. स्थानीय या पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों का निर्विरोध जीतना कोई बड़ी बात नहीं है, हालांकि लोकसभा चुनाव में अक्सर ही ऐसा होता है. पिछले 70 वर्षों में 30 से ज्यादा मामले ऐसे हुए हैं. जब कोई उम्मीदवार निर्विरोध जीता है. वैसे 1950 से 60 के दशक में ऐसा होता था. लेकिन धीरे-धीरे ये संख्या कम होती चली गई.

सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की थी

वर्ष 2018 में पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में सत्ताधारी पार्टी TMC ने 34 फीसदी सीटें निर्विरोध जीत ली थी. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था. ये आंकड़े बताते हैं कि हमारे संविधान में लोकतंत्र का जो रूप तय किया गया है. जमीनी स्तर पर लोकतंत्र उस तरह काम नहीं कर रहा है. ऐसे में सूरत लोकसभा सीट निर्विरोध जीतना बीजेपी के लिए भले ही अच्छी ख़बर हो. लेकिन किसी भी स्तर के चुनावों में उम्मीदवारों का निर्विरोध जीतना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं माना जाता.

 

 

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