लोकसभा 2024: लखनऊ-दिल्ली ठिकाना, फिर प्रतापगढ़ नहीं आना!

जातिगत समीकरण और दलों के दलदल में जमीनी विकास हुआ लुप्त

लोकसभा 2024: लखनऊ-दिल्ली ठिकाना, फिर प्रतापगढ़ नहीं आना!

ब्रजेश त्रिपाठी

  • महंगाई और बेरोजगारी से जनता का मूड खराब, प्रत्याशी भी बुरे फंसे
लखनऊ, प्रतापगढ़ ब्यूरो (तरुण मित्र)। राजधानी लखनऊ व प्रयागराज के बीच बसा राजे-रजवाड़ों का गढ़...प्रतापगढ़, वैसे तो हमेशा से ही राजनीति का केंद्रबिंदु रहा है। लेकिन इस बार बदलते मौसमी तेवर के साथ ही यहां के आबोहवा में भी नेताओं और जनता-जनार्दन के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर क्या सटीक चल रहा है, इसका सही तौर पर अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। फिर भी 2024 के इस लोकसभा चुनावी कशमकश के बीच फंसे हुए पेंच को थोड़ा बहुत खोलने के लिये तरूणमित्र टीम ने प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र की राजनीतिक नब्ज टटोलनी शुरू की।

देखा जाये तो प्रतापगढ़ शहर में यहां तक ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर मध्यम वर्गीय लोग रहते हैं। करीब 20 फीसद लोग आर्थिक तौ पर संपन्न हैं, अच्छी खासी कोठियां और आलीशान दुकानें हैं, धंधे हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 80 फीसद जनता अभी भी महंगाई और बेरोजगारी कराह रही है...रोज कमाना और रोज खाना। उन्हें फ्लाईओवर ब्रिज,शहर की चमक दमक ,नेशनल हाईवे सड़क से क्या मतलब। आज से लगभग 40 साल पहले जो सड़कें शहर में थी वहं आज भी हैं। अलबत्ता रिपेयरिंग हर साल होता है। यह बात अलग है कि सड़कों पर डिवाइडर बनाकर पेंटिंग कर दी गई और गांव में भी जहां पगडंडियां थीं, वहां सड़कों का निर्माण सरकार द्वारा कराया गया। नि:संदेह विकास कार्य हुए, सड़कों का जाल बिछा लेकिन प्रतापगढ़ में स्वच्छता के नाम पर करोड़ों रुपए हर वर्ष व्यय होता है परंतु हर वार्ड में नाले और नालियां कूड़ों से बजबजा रही हैं जिसका कोई पुरसा हाल नहीं।

आजादी के बाद से आज 70-75 वर्षों में प्रतापगढ़ से  केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार में राजा महाराजाओं से लेकर स्थानीय वरिष्ठ नेताओं, विधायकों और मंत्रियों का प्रतिनिधित्व रहा है और दबदबा भी कायम रहा लेकिन जनपद के स्वरूप में थोड़ा बहुत ही कायाकल्प हुआ वरना आज प्रतापगढ़ का स्वरूप कुछ और ही होता। लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव के महासंग्राम में प्रत्याशियों द्वारा चौक-चौपाल और दरवाजे जाकर मतदाताओं से झूठे वायदे और प्रलोभन के सहारे रिझाना और बाद में विजई हुए तो हो सिंकदर बन गये। फिर क्या कहने हैं,  लखनऊ और दिल्ली में ठिकाना फिर प्रतापगढ़ नहीं आना, लगता नहीं सुहाना।

लिखते याद आया कि 1980 में कवि राजेंद्र राजन ने एक कविता के माध्यम से प्रत्याशियों पर कटाक्ष करते हुए लिखा था जो इन पर फिट बैठता है *आने वाले हैं शिकारी मेरे गांव में, जनता है चिंता की मारी मेरे गांव में* इस पंक्ति में जहां शिकारी शब्द का प्रयोग हुआ है वहीं पर उन्होंने मदारी, भिखारी और जुगाड़ी शब्द का भी प्रयोग गीत में किया था। लोकतंत्र के इस महापर्व  पर अनेक पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों को महासंग्राम में उतारा हो परंतु मुख्यत: चार पार्टियां भाजपा ,सपा,बसपा और पीडीएम ही ऐसी है जिनके प्रत्याशी क्रमश: संगम लाल गुप्ता ,डॉ. एसपी सिंह पटेल, प्रथमेश मिश्रा सेनानी एवं ऋषि कुमार पटेल हैं जिन्हें एक दूसरे से कम न आंका जाए। सभी अपनी-अपने कला कौशल में पारंगत हैं जिनका राजनीतिक विश्लेषण 28 अप्रैल के अंक में *तरुणमित्र *में विशेष रूप से किया गया था जिससे स्पष्ट हो गया था कि चारों प्रत्याशी पार्टी और जाति के नाम से ऐसा दलदल में फंस चुके हैं कि यहां के जनमानस का मूड बिगड़ा बिगड़ा सा लगता है क्योंकि हर घर में कम से कम एक बेरोजगार है और महंगाई चरम पर क्योंकि इन दो मुद्दों पर सभी चुप हैं ,निरुत्तर हैंऔर न निदान की कोई युक्ति है।

जहां तक सवाल पार्टी का है उदाहरणार्थ भाजपा पार्टी जो यहां के मानस में खास है क्योंकि मोदी और योगी के कार्यशैली और नीतियों से प्रभावित है परंतु अधिकांश जनता भाजपा प्रत्याशी संगम लाल गुप्ता से नाखुश इसलिए है कि जनता के बीच वह समय कम दे पाए।

बहरहाल, जनता को समझना भी चाहिए कि चिलबिल का फ्लाई- ओवर ब्रिज इन्हीं की देन है तीन-चार रेलवे स्टेशनों का नाम परिवर्तित कर दिया, विकास संबंधी बैठकों में भाग लेते थे। हां , इतना जरूर है कि कार से नीचे उतरकर नीचे की हकीकत जानने की कोशिश नहीं करते थे। यह भी है कि ग्राम प्रवास के दौरान पोखरों में नहाये भी है। इससे उन्होंने ग्राम वासियों को संदेश दिया कि वह शहर वासी ही नहीं है,ग्रामवासी भी हैं। यह सब खेला है, तभी मिला है। टॉप पोस्ट मंत्रियों से प्रत्याशी संगम लाल गुप्ता से सीधी पकड़ है इसलिए भाजपा की पहली लिस्ट में ही प्रत्याशी घोषित हो गए।

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कोई जमीनी हकीकत से दूर, कोई जातियों में फंसा...!

दूसरे नंबर की पार्टी सपा है जो इंडी गठबंधन के चलते शिक्षाविद् व स्कूल संचालक डॉ. एसपी सिंह पटेल को प्रत्याशी घोषित किया और वह बुधवार को नामांकन भी कर दिए। नामांकन के वक्त पट्टी विधायक राम सिंह पटेल, पूर्व एमएलसी कांति सिंह, सपा नेता संजय पांडे ,मोनू तिवारी, पूर्व विधायक नागेंद्र सिंह मुन्ना यादव ,राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी के मीडिया प्रभारी ज्ञान प्रकाश शुक्ला व कांग्रेस जिलाअध्यक्ष डॉ नीरज त्रिपाठी मौजूद रहे। दिक्कत उनके साथ यही है कि वह प्रतापगढ़ जनपद के निवासी नहीं है। उन्हें कोई जानता तक नहीं और ना ही वह किसी को पहचानते हैं।

सपा प्रत्याशी पटेल को जानने या मिलने की अगर कोशिश भी की जाए तो इनके मीडिया प्रभारी पत्रकारों तक से मिलने के लिए परहेज करते हैं ऐसी स्थिति में जब पत्रकार ही सुगमता से उनसे नहीं मिल पा रहे हैं तो वह जनता से कैसे मिलेंगे, यह सोचनीय है। उन्होंने प्रतापगढ़ का शुरूआती दौर नहीं देखा और न ही अंतिम पायदान। फिर भी जनता के बीच वह जाकर समझाते हैं कि यहां विकास कार्य नहीं हुआ है। उन्हें प्रत्याशी बनाने का एक ही फामूर्ला था कि सपा अध्यक्ष इस बार यादव -मुस्लिम की जगह कुर्मियों को तवज्जो देकर भाजपा के खिलाफ जबरदस्त तरीके से जातीय चक्रव्यूह की रचना की लेकिन उनका यह फामूर्ला धरा का धरा रह गया। पीडीएम पार्टी ने ऋषि कुमार पटेल को मैदान में उतार दिया।

जिससे कुर्मियों का वोट बैंक विभाजित हो जाना तय है जिसका फर्क सपा प्रत्याशी पर सीधे पड़ना तय है। कहने का तात्पर्य हुआ कि सपा और पीडीएम आपस में जातिगत आधार पर भीड़ गए। हां, इतना जरूर है कि सपा को पुराने फार्मेूले के आधार पर मुस्लिम वोट भी मिलेगा। बसपा प्रत्याशी प्रथमेश मिश्रा सेनानी की बात है तो इन्होंने भी बुधवार को अपना नामांकन कर दिया है। जातिगत आधार पर अधिकांश ब्राह्मण प्रथमेश मिश्रा को पसंद करेंगे और सेनानी का सीधा मुकाबला भाजपा प्रत्याशी संगम लाल गुप्ता से होना तय है। प्रथमेश मिश्र सेनानी के पिता शिव प्रकाश मिश्र सेनानी हैं जो भाजपा के कद्दावर नेता हैं जिनका सवर्णों पर अच्छा प्रभाव है। इस तरह देखा जाए तो प्रतापगढ़ लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों का संघर्ष त्रिकोणीय होने की प्रबल संभावना है जो भाजपा, सपा और बसपा के बीच होगा। मुकाबला दिलचस्प है...बाजी कौन मारेगा, समय बतायेगा।

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