मैनपुरी में साइकिल का जलवा बरकरार रहेगा या फिर खिलेगा कमल

 मैनपुरी में साइकिल का जलवा बरकरार रहेगा या फिर खिलेगा कमल

लखनऊ। ऐतिहासिक किलों और पौराणिक गाथाओं के लिए दुनियाभर में पहचान रखने वाले मैनपुरी का समृद्ध इतिहास है। किवदंती है कि मयन ऋषि के नाम पर ही मैनपुरी का नाम पड़ा। वर्तमान में मैनपुरी सीट मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि की वजह से जानी जाती है। मैनपुरी सीट पर 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होगा।

मैनपुरी लोकसभा सीट का इतिहास-
मैनपुरी लोकसभा सीट पर वर्ष 1952 में हुए स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर वर्ष 1991 तक किसी एक दल वर्चस्व नहीं रहा था। इस अवधि में सर्वाधिक बार कांग्रेस को विजय मिली, परंतु उसे पराजय का स्वाद भी चखना पड़ा था। इस सीट पर स्व. मुलायम सिंह यादव का प्रभाव तो उनके राजनीतिक उदय के बाद भी आरंभ हो गया था। परंतु वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी (सपा) गठन होने के बाद यह क्षेत्र सपा के रंग में रंगता चला गया। वर्ष 1996 में मुलायम सिंह यादव पहली बार इस सीट पर लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे थे।

मुलायम सिंह की इस जीत के बाद लगातार इस सीट पर सपा का कब्जा है।वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जबर्दस्त लहर के बावजूद यहां मुलायम सिंह सांसद बने। वर्ष 2022 में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी डिंपल यादव ने यहां जीत दर्ज की। आजादी के बाद से इस सीट पर अभी तक 20 बार चुनाव हुए हैं। इस सीट पर दस बार सपा, कांग्रेस पांच बार, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोकदल, जनता पार्टी (सेकुलर), जनता दल और जनता पार्टी को एक-एक बार जीत मिली, लेकिन भाजपा यहां से पहली जीत का इंतजार कर रही है।

पिछले दो चुनावों का हाल-
2019 के आम चुनाव में मुलायम सिंह यादव कुल 524,926 (53.75 फीसदी) वोट पाकर विजयी हुए। भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 (44.09 फीसदी) वोट मिले, और वो दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के सवेंद्र सिंह को महज 0.27 फीसदी ही वोट मिले थे।मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा सीट खाली हो गई।तो 2022 में यहां पर उपचुनाव कराया गया। जिसमें सपा से डिंपल यादव और भाजपा से रघुराज सिंह शाक्य चुनाव मैदान में थे। डिंपल यादव ने 6,18,120 (64.08 फीसदी) वोट हासिल कर जीत का परचम लहराया। भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य को 3,29,659 (34.18 फीसदी) वोट पाकर रनर रहे।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार-
इस सीट पर एक ओर जहां सपा की टिकट पर डिंपल यादव हैं तो दूसरी ओर भाजपा ने योगी सरकार के मंत्री जयवीर सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। बसपा ने शिव प्रसाद यादव पर दांव खेला है।

मैनपुरी सीट का जातीय समीकरण-
मैनपुरी लोकसभा उत्तर प्रदेश की सीट नंबर-21 है। मैनपुरी सीट के लिए 17 लाख 46 हजार 895 वोटर पंजीकृत हैं। इस संसदीय क्षेत्र में करीब 4.25 लाख यादव वोटर हैं। 3.25 लाख से अधिक शाक्य, 1.50 लाख से अधिक ठाकुर, 1.20 लाख ब्राह्मण, इतने ही लोधी वोटर हैं। करीब 2 लाख दलित हैं, जिसमें 1.25 लाख जाटव व 75 हजार कठेरिया, लोधी वोटर्स की संख्या एक लाख के आसपास है। वैश्य और मुस्लिम मतदाता भी करीब एक लाख की संख्या में हैं। करीब एक लाख कुर्मी मतदाता भी हैं।

विधानसभा सीटों का हाल-
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं। इनमें चार सीटें मैनपुरी, भोगांव, किशनी (सु0) और करहल मैनपुरी जिले में हैं जबकि जसवंतनगर सीट इटावा जिले में है। मैनपुरी और भोगांव भाजपा के कब्जे वाली सीटें हैं। वहीं अन्य तीन सीटों सपा काबिज है।

जीत का गणित और चुनौतियां-
बसपा ने यादव उम्मीदवार उतारा है। इसके हिसाब से सपा के सामने दो चुनौतियां होगीं। पहला तो ये कि बसपा के शिव प्रसाद सपा के यादव वोट में सेंध लगा सकते हैं। दूसरा ये कि बसपा का अपना भी एक मजबूत वोट बैंक है। इसमें खासकर दलित और निचला तबका आता है, जो हमेशा मायावती से जुड़ा रहा है। सपा प्रत्याशी शिव प्रसाद जीत नहीं पाए तो सपा के लिए 'वोट कटवा' जरूर साबित हो सकते हैं। वहीं मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में डिंपल की जीत के पीछे सहानुभूति बड़ा फैक्टर था।

इधर, भाजपा यह भरोसा है कि जैसे विधानसभा चुनाव में मैनपुरी में सेंध लगाई, उसके प्रभाव में लोकसभा चुनाव के नतीजे भी बदलेंगे और वो यहां कमल खिलाने में सफल होगी।राजनीतिक विशलेषक सुशील शुक्ल कहते हैं कि इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पीएम मोदी की लोकप्रियता भी बहुत बढ़ी है। दूसरी तरफ जयवीर सिंह ने क्षेत्र में काफी काम कराए हैं। ऐसे में सपा के लिए जीतना आसान नहीं होगा। हालांकि चुनावी मैदान में बसपा की मौजूदगी दोनों दलों को बेचैन किए हुए है।

मैनपुरी से कौन कब बना सांसद-
1952 बादशाह गुप्ता (कांग्रेस)
1957 बंसी दास धनगर (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी)
1962 बादशाह गुप्ता (कांग्रेस)
1967 महाराज सिंह (कांग्रेस)
1971 महाराज सिंह (कांग्रेस)
1977 रघुनाथ सिंह वर्मा (भारतीय लोकदल)
1980 रघुनाथ सिंह वर्मा (जनता पार्टी सेक्युलर)
1984 बलराम सिंह यादव (कांग्रेस)
1989 उदय प्रताप सिंह (जनता दल)
1991 उदय प्रताप सिंह (जनता पार्टी)
1996 मुलायम सिंह यादव (सपा)
1998 बलराम सिंह यादव (सपा)
1999 बलराम सिंह यादव (सपा)
2004 मुलायम सिंह यादव (सपा)
2004 धर्मेंद्र यादव (सपा) उपचुनाव
2009 मुलायम सिंह यादव (सपा)
2014 मुलायम सिंह यादव (सपा)
2014 तेज प्रताप यादव (सपा) उपचुनाव
2019 मुलायम सिंह यादव (सपा)
2022 डिपंल यादव (सपा) उपचुनाव

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