साइबर ठगी के ये 4 तरीके बेहद खतरनाक, जरा सी चूक में लुट जाते लोग

साइबर ठगी के ये 4 तरीके बेहद खतरनाक, जरा सी चूक में लुट जाते लोग

लखनऊ: देश के सामने साइबर अपराध एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने के बाद तो, कई लोग साइबर जालसाजों के झांसे में आकर ठगी का शिकार हो रहे है. व्यक्ति ऑनलाइन शॉपिंग कर रहा हो, या फिर सोशल मीडिया में सक्रिय हो, हर जगह उसका सामना साइबर अपराधियों से हो रहा है. बीते कई माह से लखनऊ समेत पूरे राज्य में कई तरह के नए तरीकों से साइबर ठगी हुई है, आइये आपको भी बताते है, कि साइबर अपराधी किस तरह से लोगों को ठग रहे है.

एआई के जरिये आपके डेटा का यूज: ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानिकि एआई टेक्नोलॉजी, देश में क्रांति ले कर आई है. हालांकि इसके दुष्परिणाम भी काफी देखने को मिल रहे है. खासकर साइबर ठगी में AI का इस्तमाल मौजूदा समय जोरो पर है. बीते छह माह में ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के माध्यम से ठगी के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. इस तरह की ठगी में जालसाज आपके सोशल मीडिया अकाउंट पर जाकर आपकी फोटो या फिर आवाज कॉपी कर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से आपकी आवाज में मदद के लिए वॉयस मैसेज बनाते है, फिर उसी के जरिए आपके पहचान के लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. खासबात ये होती है कि, जालसाजों की इस तकनीकी का पता शिकार के खास रिश्तेदारों तक को नहीं चल पाता है,और झांसे में आकर वह सामने वाले के खाते में पैसा ट्रांसफर कर देता है. इस तरह की ठगी का शिकार कई पुलिस अफसर, जज और पढ़े लिखे वर्ग के लोग हुए है.

1. हिडेन एप इंस्टॉल करके ठगी
थाईलैंड, म्यांमार और मलेशिया में बैठे साइबर अपराधी हिडेन एप का इस्तमाल कर लोगों को ठग रहे है. ये ठग शॉर्ट टाइम में अधिक पैसा कमाने, या फिर अन्य लुभावने वायदे देकर आपके मोबाइल पर एक लिंक भेज देते हैं. जैसे ही लिंक क्लिक होता है, हिडेन एप का काम शुरू शुरू हो जाता है. ये एप इंस्टाल बिना मोबाइल या लैपटॉप मालिक की जानकारी के ही हो जाता है. जिसके बाद मोबाइल के डेटा का पूरा एक्सेस अपराधियों के पास होता है. मोबाइल तो शिकार के पास है, लेकिन उसका इस्तमाल साइबर अपराधी करते हैं और फिर मोबाइल नंबर से लिंक खातों से रुपये उड़ा दिए जाते हैं.

2. मिस्ड कॉल के जरिये चपत
मोबाइल में मिस्ड कॉल कर साइबर ठगी करने का यह भी एक नया तरीका सामने आया है. इसमें साइबर ठग टारगेट को कई बार मिसकॉल करते हैं, जिसके बाद टारगेट का मोबाइल नेटवर्क चला जाता है. बस इसी दौरान जालसाज रुपये उड़ा लेते हैं. साइबर पुलिस की जांच में सामने आया है कि, इस तरह की ठगी सिम स्वैपिंग की जरिये हो रही है, जिसमें जालसाज मिस कॉल करने के बाद टारगेट के नंबर का डुप्लिकेट सिम निकलवा लेते हैं और उस सिम को अपने फोन में लगाते हैं. डुप्टिकेट सिम निकलते ही टारगेट का सिम बंद हो जाता है. जिसके बाद ठग पैसे ट्रांसफर करते है. जिसका ओटीपी शिकार के पास पहुंचता ही नहीं है.

3. वाट्सएप हैक
वर्तमान समय में दुनिया में अधिकांश लोग वाट्सएप इस्तमाल कर रहे है. साइबर अपराधी वाट्सएप में अलग अलग तीन तरह की ठगी करते है. इसमें पार्ट टाइम अधिक कमाई का झांसा देकर एक लिंक पर क्लिक करने को कहते हैं. लिंक पर क्लिक करते ही एक ओटीपी आता है, जिसे ठग मांग लेते हैं. उस ओटीपी को डालते ही ठगो के पास सामने वाले के वाट्सएप का एक्सेस चला जाता है. जिसके बाद यानी आपके फोन से लॉगआउट होकर उसके फोन में लॉगिन हो जाता है. इसके बाद अपराधी टारगेट के वाट्सएप से उसके जानकारों को मैसेज कर मदद मांगते हैं, क्योंकि मैसेज आपके नंबर से गया होता है. इसलिए लोग इस पर भरोसा करके पैसे दे देते हैं.

4. लोन डिफॉल्टर पर नजर
कोरोना काल के बाद सैकड़ों लोगों की नौकरी और बिजनेस खत्म हो गया. ऐसे में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोगों ने लोन लेना शुरू किया है. लोन लेने को होड़ मची तो, साइबर अपराधी भी एक्टिव हो गए. उन्होंने ऐसे लोगों को कॉल करना शुरू किया, जिन्हे बैंक ने लोन डिफाल्टर घोषित कर दिया होता है. ये ठग उन्हें टारगेट करने के लिए कॉल करते है और फिर कम अमाउंट में सेटलमेंट कराने का झांसा देते हैं. सैटलमेंट प्रोसेस के लिए एडवांस पैसा जमा कराने के नाम पर ठगी करते हैं. वहीं, कई मामलों में ये लोग डिफॉल्टर को पुलिस अधिकारी बनकर कॉल करते हैं. कानूनी कार्रवाई करने की धमकी देकर ठग रकम ऐंठ रहे हैं.

साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक ऐसे बचे ठगी से
साइबर ठगी से बचने के लिए सतर्कता बहुत जरूरी है.यदि आपके पास सोशल मीडिया में कोई रिक्वेस्ट आए तो उसे वैरिफाई करें. बिना सोचे-समझे किसी को भी पैसा न भेजें.ठगी का शिकार होने पर सूचना साइबर पुलिस को दें. किसी भी अंजान लिंक पर क्लिक न करें.सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट को प्राइवेट रखें

 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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