जल संकट की समस्या

जल संकट की समस्या

होली गुजरते ही सम्पूर्ण उत्तर भारत गर्मी की चपेट में आ गया है और इसके साथ ही एक बार फिर जल संकट को लेकर चर्चा व उपाय तेज हो गए हैं। कहने को भारत में केंद्र सरकार ने 2030 तक सभी के लिए पानी और स्वच्छता का लक्ष्य प्राप्त करना तय किया है। पर वर्तमान में सभी क्षेत्रों में जल की बढ़ती मांग तथा वर्षा के पैटर्न में व्यवधान के कारण भूजल पर निर्भरता बढ़ गई है। इसके उचित प्रबंधन और स्थायी रूप से उपयोग हेतु उचित कार्रवाई के साथ ठोस प्रयास किये जाने की महती आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भूजल पृथ्वी के सभी तरल मीठे पानी का लगभग 99 प्रतिशत है जिसमें समाज को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करने की क्षमता है।

भूजल पीने के पानी सहित घरेलू उद्देश्यों के लिये उपयोग किये जाने वाले कुल जल का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा है। भारत की जनसंख्या लगभग 1.4 अरब है जो विश्व में सर्वाधिक है। 2050 तक जनसंख्या बढ़कर 1.7 अरब होने का अनुमान है। भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन लगभग 4 प्रतिशत लोगों के लिए ही पर्याप्त जल संसाधन हैं। भारत में लगभग 90 मिलियन लोगों को सुरक्षित पेयजल का अभाव है। भारत की सामान्य वार्षिक वर्षा 1100 मिमी है जो विश्व की औसत वर्षा 700 मिमी से अधिक है। भारत मौसम विज्ञान विभाग क़े आंकड़ों के मुताबिक जून-अगस्त 2023 के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून 42 प्रतिशत जिलों में सामान्य से नीचे रहा है।

अगस्त 2023 में देश में बारिश सामान्य से 32 प्रतिशत कम और दक्षिणी राज्यों में 62 प्रतिशत कम थी। पिछले 122 वर्षों में अर्थात 1901 के पश्चात भारत में पिछले वर्ष अगस्त 23 में सबसे कम वर्षा हुई। कम वर्षा से न केवल कृषि पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इससे देश के विभिन्न क्षेत्रों में पानी की भारी कमी भी हो सकती है। जल संसाधन मंत्रालय का अनुमान है कि देश में 2025 तक कुल पानी की माँग 1,093 बीसीएम और 2050 में 1,447 बीसीएम होगी। परिणामस्वरूप अगले 10 वर्षों में पानी की उपलब्धता में भारी कमी की संभावना है। भारत विश्व में भूजल का सबसे अधिक दोहन करता है। यह मात्रा विश्व के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े भूजल दोहन-कर्ता चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के संयुक्त दोहन से भी अधिक है फिर भी देश में लगभग 76 प्रतिशत लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं।

बता दें कि देश में मौजूद भूजल का केवल 8 प्रतिशत ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका 80 प्रतिशत भाग सिंचाई में उपयोग किया जाता है, शेष 12 प्रतिशत भाग उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है। जल संकट और अत्यधिक दोहन को कम करने के लिए कई उपाय हैं। आधुनिक तकनीकों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रिमोट सेंसिंग आदि का उपयोग करके पानी की खपत को मापा और सीमित किया जा सकता है। साथ ही जल स्रोतों का विस्तार, जल दक्षता में सुधार, और जल संसाधनों की रक्षा करने से पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। देश में जल संसाधनों की संरक्षा के लिए नीतियों में सुधार किया जाने और सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों का विस्तार किए जाने की जरुरत है ताकि पानी की सटीक और सही खपत की सुनिश्चित हो सके। 

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