प्रो.कौल प्रकृति प्रेमी होने के साथ एनबीआरआई को किया स्थापित - डॉ.संजय कुमार
स्थापना के बाद 1953 में संस्थान सीएसआईआर से हुआ संबद्ध
By Harshit
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- वैज्ञानिकों ने नमन करते हुए अर्पित की श्रद्धांजिल
- शोध कार्यो को बढाने के लिए व्यक्त किये सुझाव
लखनऊ। राजधानी में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान की स्थापना करने वाले प्रो.केएन कौल को वैज्ञानिकों ने नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। शुक्रवार को सीएसआईआर-एनबीआरआई ने संस्थापक प्रो. कैलाश नाथ कौल की स्मृति में विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार उपस्थित रहे। डॉ. संजय कुमार ने सतत जैव आधारित अर्थव्यवस्था और पौधों के महत्व पर स्मृति व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि पद्मभूषण प्रो.कैलाश नाथ कौल एक महान भारतीय वनस्पतिशास्त्री, प्रकृतिप्रेमी एवं सफल कृषि वैज्ञानिक थे। जिनको बागवानी, वन्यजीव, पेड़ पौधों से काफी लगाव था। उन्होंने कहा कि प्रो. कौल ने ही राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान की वर्ष 1948 में स्थापना की जिसे बाद में वर्ष 1953 में सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान कर दिया गया।
इसके अलावा प्रो. कौल ने भारत के बाहर विभिन्न देशों जैसे श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, जापान, फिलिपींस में भी वनस्पति उद्यानों की स्थापना करने में सहयोग दिया। वहीं संस्थान के निदेशक प्रोफेसर डॉ. अजित कुमार शासनी ने अतिथियों का स्वागत सम्बोधन करते हुए कहा कि प्रो. कौल के योगदान का उल्लेख रहा है। आज का सीएसआईआर-एनबीआरआई जिस नींव पर खड़ा है उसका निर्माण प्रो. कौल के विचारों से हुआ था। इसी क्रम में डॉ. संजय कुमार ने अपने व्याख्यान में देश के आत्म निर्भर होने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि भविष्य में इस दिशा में कुछ क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहने वाला है। जिनमें बायोफार्मा, बायो रिसर्च, बायो इंडस्ट्री, बायो-एग्री एवं बायो आई टी प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में किये जा रहे अपने प्रयासों के माध्यम से न केवल अगली पीढी के उत्पाद बनाने में मदद मिलेगी अपितु विभिन्न क्षेत्रों में आत्म निर्भरता भी प्राप्त होगी।
उन्होंने इस सन्दर्भ में विभिन्न जैव-संसाधनों के उचित प्रयोग की दिशा में आने वाली चुनौतियों विशेषकर जैव संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करना, भूमि का सदुपयोग, मूल्य वर्धन प्रक्रिया, प्रसंस्करण एवं पैकिंग तथा बाजार से संबंध स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए उचित रणनीतियां बनाने पर चर्चा गयी।
इस अवसर पर उन्होंने उदहारण के तौर पर भारत में हींग की खेती, पूर्वोत्तर में सेब की खेती, हिमाचल में वास्तविक दालचीनी की खेती तथा सजावटी पुष्पों में नए फूलों की खेती जैसी नवीन शुरूआतों की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि जिसके माध्यम से किसानों की आय भी बढ़ रही है। इस अवसर पर उन्होंने संस्थान से अपने पुराने संबंधों की चर्चा करते हुए वैज्ञानिकों का आवाहन किया कि वह ऐसे शोध कार्यों पर अधिक ध्यान दें जिनके लाभ आम जनता एवं उद्योगों तक पहुँचाया जा सके। कार्यक्रम के अंत में संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एसके तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
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