गंगरेल बांध में जलभराव कम होने से तेजी से मर रही है मछलियां

गंगरेल बांध में जलभराव कम होने से तेजी से मर रही है मछलियां

धमतरी। भीषण गर्मी का असर चारों ओर हो रहा है। तेज गर्मी से गंगरेल बांध में जलभराव काफी कम होने लगा है। यहां लगभग 10 टीएमसी पानी है, ऐसे में पड़ रही तेज धूप व विभिन्न कारणों से बांध के फुटहामुड़ा क्षेत्र में बड़ी संख्या में मछलियां मर रही है। मृत मछलियों को आसपास क्षेत्र के गड्ढों में पाट दिया गया है। वहीं कई जगह खुले में पड़ा हुआ है। गंगरेल बांध किनारे ग्राम फुटहामुड़ा है, जो बांध किनारे संचालित है। बांध में जलभराव कम होने और गर्मी बढ़ने की वजह से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मछलियां मर गई है। मृत मछलियों को आसपास ही बड़े गड्ढे खनन कर बांध किनारे के जमीन पर ही पाटा जा रहा है। वहीं कई खुले जगहों पर भी मृत मछलियों को फेंक दिया गया है। आसपास रहने वाले ग्रामीण व राहगीर मछलियों के इस बदबू से लोग परेशान है। फिलहाल यह जानकारी इंटरनेट मीडिया में प्रसारित फोटो से मिली है। वहीं जिला मत्स्य विभाग व जिला प्रशासन की ओर से अब तक गंगरेल बांध में बड़ी संख्या में मछलियों के मरने की स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है। जल संसाधन विभाग ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है। गंगरेल बांध में बड़ी संख्या में मछलियों के मृत होने की जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी। मिली जानकारी के अनुसार गंगरेल बांध किनारे ग्राम फुटहामुड़ा क्षेत्र में मछली पालन विभाग की ओर से 10 केज कल्चर संचालित है। इसका संचालन धमतरी के साथ ही राजधानी रायपुर की एक एजेंसी करती है। गंगरेल बांध में मृत मछलियों के संबंध में जिला मत्स्य विभाग के सहायक संचालक गीतांजली गजभिए ने कहा कि जहां मछली पालन हो रहा है, वहां 20 फीट पनी है। बांध से पानी बाहर निकलने के कारण जलस्तर कम हुआ है। भारी गर्मी से मछलियां मर रही हैं, प्रदूषण ने फैले इसलिए मछलियों को पानी से बाहर निकाला गया है।

धमतरी वाईल्ड लाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष गोपीकृष्ण साहू ने बताया कि फुटहामुड़ा मध्य भारत का एक ऐसा क्षेत्र हैं, जहां हर साल 15 जनवरी से अगस्त तक दुर्लभ प्रजाति के प्रवासी पक्षी जमीन में घोसला बनाकर रहते हैं। मध्य भारत में नागपुर के अलावा फुटहामुड़ा वेटलेंड में वर्ष 2017 से 50 से अधिक संख्या में जमीन में घोसला बनाते थे, जो धीरे-धीरे कम हो गए हैं। इसमें ओरिएंटल प्रेन्टिनकोल, लिटिल रिंग प्लोवर, ब्लैक विंग रिटल्ट, इंडियन कर्सर, लाल चोंच टिटहरी, पीला चोंच टिटहरी, लार्क, पैडी फील्ड पिपिट, पेंटेड सेंडग्रास, ग्रेफ्रेकोलीन, जंगल बुश क्वेल, बार बटन क्वेल और भी कई दुर्लभ प्रजातियों की पक्षियों के घोसला बनाने की जगह है। गोपीकृष्ण साहू का आरोप है कि मुख्यत: स्माल प्रेन्टिनकोल जो 200 से ऊपर घोसला बनाती है, वे केज फिशिंग की वजह से बच नहीं पा रही हैं। केज कल्चर मछली पालन की वजह से बर्बादी के कगार पर है।


Tags:

About The Author

Latest News

पीस पार्टी के प्रत्याशी द्वारा नामांकन पत्र किया गया दाखिल पीस पार्टी के प्रत्याशी द्वारा नामांकन पत्र किया गया दाखिल
संत कबीर नगर,01 मई 2024 (सू0वि0)। लोकसभा सामान्य निर्वाचन-2024 में 62-संत कबीर नगर संसदीय लोकसभा क्षेत्र हेतु आज पीस पार्टी...
जिला निर्वाचन अधिकारी की उपस्थित में मतदान कार्मिकों का प्रथम रेण्डमाइजेशन हुआ सम्पन्न
स्वीप (SVEEP) कार्यक्रम के तहत मतदाताओं को मतदान करने के प्रति किया गया जागरूक
ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन द्वारा लगाए गए निशुल्क प्याऊ का इंस्पेक्टर धनघटा ने किया उद्घाटन
चरक हास्पिटल कर्मियों ने तीमारदारों से की मारपीट,किया लहुलुहान
फेफड़ों का कैंसर,टीबी के लक्षण होते एक जैसे : डॉ. सूर्यकान्त
हाजी स्वीट पर दर्ज मुकदमे में लैब रिपोर्ट के इंतजार में पुलिस