जगद्गुरु श्री शंकराचार्य भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उन्नायक

जगद्गुरु श्री शंकराचार्य भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उन्नायक

जयपुर। जगद्गुरु श्री शंकराचार्य के एकात्म दर्शन पर व्याख्यानमाला कार्यक्रम सोमवार को एमएनआईटी के नीति सभागार में आयोजित किया गया। भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित और शैक्षिक मंथन संस्थान, जयपुर और राजकीय महाविद्यालय सांगानेर द्वारा आयोजित यह व्याख्यानमाला जगद्गुरु श्री शंकराचार्य के एकात्म दर्शन पर केंद्रित रही, जिसमें उनके दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श किया गया। व्याख्यानमाला के विषय का प्रवर्तन करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. शिव शरण कौशिक ने भारतीय भाषा समिति द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में स्वीकृत 22 भाषाओं के संवर्धन एवं उनमें शोध तथा अनुसंधान के उद्देश्य को प्रकट किया।  कार्यक्रम की प्रस्तावना भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष चमू कृष्ण शास्त्री के वीडियो संदेश के माध्यम से रखी गई। उन्होंने कहा कि जगद्गुरु शंकराचार्य ने संस्कृत के माध्यम से भारत का सामाजिक व आध्यात्मिक पुनरुत्थान किया एवं उन्होंने वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को दिए गए प्रोत्साहन को रेखांकित किया।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता शास्त्री कोसलेंद्रदास ने अपने उद्बोधन में जगद्गुरु शंकराचार्य के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सनातन संस्कृति का वर्तमान स्वरूप आदि शंकराचार्य की ही देन है। उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का उल्लेख करते हुए कहा कि पं. दीनदयाल द्वारा दिया गया एकात्मक मानवतावाद, गुरुग्रंथ साहिब, तुकाराम के एकेश्वरवाद का आधार शंकराचार्य जी द्वारा दिया गया एकात्मक दर्शन है। आदि गुरु शंकराचार्य ने तत्कालीन समय में भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सनातन धर्म के विभिन्न मतों में समन्वय व एकता स्थापित करके देश को सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया। शंकराचार्य ने जो कुछ कहा वह वेदमूलक है, वेद ज्ञान की अक्षय निधि है।

डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष ने अपने उद्बोधन में कहा कि जगद्गुरु आदि शंकराचार्य अपने समय के भारत की आधुनिकता के उन्नायक थे, जिन्होंने भारत के राजनीतिक पुनर्जागरण के साथ सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता प्रतिपादित की। भारतीय पुनर्जागरण के पुरोधा शंकराचार्य ने साहित्यिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और वैचारिक पुनर्जागरण का कार्य करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति को पुनः स्थापित किया। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, राजस्थान (उच्च शिक्षा) के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि शंकराचार्य ने अपने विचारों को वेदों के आधार पर प्रतिष्ठापित कर हिंदू समाज को दिशा देने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

 

 

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