किसान का बेटा ओटीटी स्टार बन मचा रहा धूम
मनोज बाजपेयी :23 अप्रैल 1969 को बिहार के पश्चिम चंपारण में बेतिया शहर के पास बेलवा गांव में जन्में मनोज बाजपेयी आज भेल ही किसी पहचान के मोहताज नहीं है, लेकिन एक वक्त था जब इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। वे एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वो पांच भाई-बहनों हैं। उनकी एक बहन पूनम दुबे फिल्म इंडस्ट्री में एक फैशन डिजाइनर हैं। उनके पिता एक किसान थे और उनकी मां एक हाउस वाइफ थीं। वहीं उनकी दमदार एक्टिंग और बेहतरीन किरदारों ने उन्हें ओटीटी स्टार बना दिया।एक बढ़कर एक बॉलीवुड फिल्में और बेव शोज दे चुके मनोज बाजयेपी आज अपना 56वां बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे हैं।
एक झूठ ने बना दिया स्टार
मनोज बाजपेयी ने 'द अनुपम खेर' शो में इस बात का खुलासा किया था कि वह बचपन से ही एक्टर बनना चाहते थे। उन्होंने 9 साल की उम्र में ये सपना देखा था, लेकिन उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनना चाहते थे। गरीबी की वजह से डॉक्टर बनने के टूटे सपने को वह अपने बेटे के जरिए पूरा करना चाहते थे। उन्होंने फिल्म 'द्रोहकाल' से एक्टिंग की शुरुआत की थी और इसके बाद साल 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'सत्या' में अपनी खास जगह बनाई थी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब बॉलीवुड से लेकर ओटीटी तक उनके नाम और काम का डंका बजता है। बता दें, NSD के लिए दिल्ली तक पहुंचने के लिए उन्होंने झूठ का सहारा लिया था। उन्होंने माता-पिता से कहा था कि वे IAS की तैयारी के लिए दिल्ली जा रहे हैं।
इस सीरीज ने बनाया मनोज को ओटीटी स्टार
अपने अभिनय के लिए मनोज को तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, छह फिल्मफेयर पुरस्कार और दो एशिया प्रशांत स्क्रीन पुरस्कार मिल चुका है। 2019 में उन्हें कला में उनके योगदान के लिए भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्मश्री से सम्मानित किया गया। मनोज बाजपेयी ने फिल्म 'पिंजर' (2003) के लिए विशेष जूरी राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। इसके बाद उन्होंने राजनीतिक थ्रिलर 'राजनीति' (2010) में भूमिका निभाई, जिसे खूब सराहा गया। 2012 में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'चक्रव्यूह' (2012), 'स्पेशल 26' (2013), 'अलीगढ़', 'भोंसले' और 'सत्या' जैसी फिल्मों में सराहनीय भूमिकाएं निभाई हैं। 'द फैमिली मैन' (2021) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर ओटीटी पुरस्कार भी जीता है।
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