अब सेना की वर्दी नहीं खरीद सकते सिविलियन
बाजार में बिक्री बैन, फौजियों जैसी ड्रेस पहनना है अपराध, जा सकते हैं जेल
By Tarunmitra
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लखनऊ : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 पर्यटकों को मार डाला. बताया जा रहा है कि हमलावर सेना और पुलिस की ड्रेस में थे. सेना की वर्दी में होने की वजह से कोई भी पर्यटक आतंकियों की मंशा को भांप नहीं पाया.
आर्मी की वर्दी को लेकर आज तक लोग कन्फ्यूज हैं कि भला आम आदमी सेना की वर्दी कैसे पहन सकता है. पुलिस की वर्दी सिविलियन को कैसे मिल जाती है. इस पर सवाल उठने लगे हैं. जबकि पुलिस और सेना की वर्दी दुकानों पर बेचना बैन है.
सेना की वर्दी पूरी तरह से बदल दी गई है. आर्मी सीधे अपने स्टोर में ही कपड़े की सप्लाई करती है. लेकिन अगर कोई आम आदमी चोरी से पुलिस या सेना की वर्दी पहनकर घूमे तो इसके लिए सजा तय की गई है.
सेना का ड्रेस कोड बदला
कैंट एरिया के दुकानदारों ने बताया, पहले सेना की वर्दी का कपड़ा दुकानों पर बेचा जाता था. यहीं पर वर्दी सिलने के लिए भी दी जाती थी, लेकिन अब मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद सेना का ड्रेस कोड ही चेंज कर दिया. बिक्री पर भी रोक लगा दी है. अब तो वर्दी का कपड़ा सप्लाई ही नहीं हो सकता. अब जो वर्दी बिक रही है वह सेना की वर्दी नहीं है.
दुकानदार जगदीश राठौर ने बताया, कोई भी सिविलियन आर्मी की वर्दी नहीं पहन सकता. आर्मी ने कपड़ा बेचे जाने पर रोक लगा दी है. आर्मी स्टोर से ही वर्दी का कपड़ा मिलता है. हमारी दुकान पर सिविल कपड़े हैं. पहले आर्मी का कपड़ा बेचने के लिए कुछ दुकानदार ऑथराइज्ड थे. जवान को अपना आई कार्ड दिखाना पड़ता था. कार्ड दिखाने पर सिलाई की जाती थी.
अब हम नहीं कर सकते बिक्री
व्यापारी विनोद कुमार ने बताया, अब मोदी गवर्नमेंट ने नया पैटर्न का कपड़ा लाया है. उसे मार्केट में नहीं बेच सकते. आर्मी का कपड़ा कैंटीन से ही मिलता है. जिसके पास कार्ड होगा उसी को कपड़ा मिलेगा. आर्मी ड्रेस का कपड़ा दुकानों पर नहीं बेचा जा सकता है. बाजार में जो कपड़े दिख रहे हैं वह सामान्य कपड़े हैं. इसमें पैटर्न का फर्क है. पहले बेल्ट ऊपर से होती थी. अब इनकी बेल्ट पतली आने लगी है.
विनोद कुमार ने बताया, अब पहले शर्ट इन कर पहनी जाती थी, अब ऊपर से पहनी जा रही है. पूरा ढांचा ही बदल गया है. आतंकवादियों का तो कोई धर्म नहीं होता. वह तो कहीं से भी अपना कपड़ा बनवा सकते हैं. पाकिस्तान से भी बनवा सकते हैं. चोरी छिपे हिंदुस्तान में तो कुछ भी हो सकता है. जब जाली नोट तैयार हो सकते हैं, तो मिलिट्री वाले कपड़े भी मिल सकते हैं.
2022 में बदला गया ड्रेस कोड
साल 2008 में सेना की वर्दी में बदलाव किया गया था. आपराधिक प्रवृत्ति और देश विरोधी ताकतें सेना के ड्रेस कोड का इस्तेमाल करके कई आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. इसे देखते हुए मोदी सरकार ने 2022 में ड्रेस कोड बदल दिया. साथ ही बाजारों में बिक्री पर भी रोक लगा दी गई. नई वर्दी में कई तरह के बदलाव किए गए हैं. इसमें उसका कैमोफ्लाज पैटर्न और नए कपड़े का इस्तेमाल किया गया है.
आर्मी के नए ड्रेस कोड की डुप्लीकेसी रोकने के लिए सेना की टीमें सदर बाजार और तोपखाना समेत अन्य बाजारों में दुकानदारों के साथ ही टेलर्स को भी समय-समय पर हिदायत देती रहती है. उन्हें बताया जाता है कि सेना का नया पैटर्न (ड्रेस कोड) किसी भी कीमत पर कोई नहीं बेचेगा. अगर कोई पैटर्न से मिलता-जुलता कपड़ा भी बेचने का प्रयास किया तो कड़ी सजा होगी, इसलिए दुकानदार अब सेना के ड्रेस कोड से मिलते-जुलते कपड़ों की बिक्री बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं.
ये है नियम और सजा
आम नागरिक, सेना और सीआरपीएफ की वर्दी की तरह दिखने वाले कॉम्बैट यूनिफॉर्म भी नहीं पहन सकता है. ऐसी वर्दी पहनने पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. दरअसल, आम लोगों के बीच कॉम्बैट ड्रेस फैशन का हिस्सा बन चुका है. लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते कि ऐसी वर्दी पहनने से समाज में भ्रम वाली स्थिति बन जाती है.
फौजियों वाली वर्दी पहनना भी अपराध
किसी भी आम नागरिक का आर्मी जैसी वर्दी पहनना अपराध है. इसके लिए 500 रुपये जुर्माना और अधिकतम तीन महीने तक की सजा भी हो सकती है. गृह मंत्रालय ने इस संबंध में सभी राज्यों के सेक्रेटरी को निर्देश दिए थे कि जो लोग भी अनाधिकृत तरीके से आर्म्ड फोर्स (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) की वर्दी या उसके जैसी दिखने वाली यूनिफॉर्म पहनते हैं, उन्हें आईपीसी की धारा-140 और 171 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है.
पीआरओ बोले- बाहर नहीं हो सकती बिक्री
मध्य कमान के जनसंपर्क अधिकारी शांतनु प्रताप सिंह ने कहा कि पहले ऑथराइज्ड दुकानों को आर्मी की ड्रेस के कपड़े की बिक्री का अधिकार दिया गया था. सब एरिया की तरफ से उन दुकानों को अनुमति दी जाती थी और बाकायदा जब किसी जवान को ड्रेस खरीदकर सिलवानी होती थी तो उसे आई कार्ड दिखाना होता था, रजिस्टर में पूरा ब्योरा दर्ज करना होता था.
दुकानदार को सेना के जवान की आईडी की फोटोकॉपी भी अपने पास रिकॉर्ड में रखनी होती थी, लेकिन जब सेना की वर्दी की तरह दिखने वाले कपड़े आम लोग पहनने लगे और इसकी शिकायतें सामने आने लगीं तो फिर आर्मी के ड्रेस कोड में चेंज कर दिया गया. अब आर्मी की वर्दी का कपड़ा सीधे सेना के स्टोर में ही सप्लाई होता है. वहीं से जवानों को आई कार्ड दिखाकर ड्रेस मिलती है, इसलिए अब बाहर सेना की वर्दी की बिक्री हो ही नहीं सकती.
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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
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