बाबा साहेब को मानना ही नहीं जानना भी जरूरी : सिकंदर यादव

गाजियाबाद। ( तरूणमित्र )

बाबा साहेब को मानना ही नहीं जानना भी जरूरी : सिकंदर यादव

वरिष्ठ समाजसेवी सिकंदर यादव आज बाबा साहेब की 133वीं जयंती, जो पहले भारत में ही मनाई जाती थी आज पूरे विश्व के प्रमुख देशों में मनाई जा रही हैं, बाबा साहब को बोधिसत्व विश्व रतन की उपाधि प्राप्त है, जोकि भारत में अकेले व्यक्ति हैं, भारत में बाबा साहेब की विचारधारा बहुत तेजी से फैल रही है जहां पहले सिर्फ दलित वर्ग ही बाबा साहेब को मानता था आज भारत की बड़ी आबादी जिसमें पिछड़े व अल्पसंख्यक भी शामिल हैं उनका अनुसरण कर रहे हैं परंतु बाबा साहब को सिर्फ मानना ही जरूरी नहीं है वरन को जानना व उनके विचारों पर चलने से ही उनके स्वप्न को साकार किया जा सकता है, बाबा साहेब स्वतंत्रता, समानता व न्याय प्रिय समाज चाहते थे वो हीं उन्होंने संविधान में दिया, भारत की बात करें तो भारत उस समय ही विश्व गुरु बना जब भारत से निकलकर बौद्ध धर्म पूरे एशिया में फैला और बौद्ध धर्म की आधारशिला करुणा, मैत्री व न्याय पर ही टिकी है, इसी को आधार बनाकर दुनियाभर के संविधान का अध्ययन करने के बाद बाबा साहब ने भारत का संविधान रचा, ज्यादातर लोग बाबा साहब के प्रति श्रद्धा तो रखते परंतु उनके विचारों से अनजान है या उनके मार्ग पर चलने को तैयार नहीं होते हैं जैसे बाबा साहब ने अपने 17 प्रतिज्ञाओं में वर्णन किया है मांस, मदिरा का सेवन न करना, व्यभिचार न करना, चोरी, छल कपट न करना व कर्मकांड व आडंबर वाली पूजा ना करना साथ ही उन्होंने अपने चरित्र को ऊंचा रखने की बात कही, उन्होंने शिक्षा को शेरनी का दूध कहा, साथ ही उनका मानना था कि इस देश के वंचित शोषित लोगों को अपना इतिहास जरूर जानना चाहिए क्योंकि जब तक वे अपना इतिहास नहीं जानेंगे वो अपना उज्जवल भविष्य नहीं बना सकते, बाबा साहब का मानना था कि व्यक्ति को अपना चरित्र हमेशा ऊंचा रखना चाहिए उन्होंने महिलाओं को हमेशा पुरुषों के बराबर अधिकार देने की वकालत की वो जानते थे कि भारत एक मजबूत राष्ट्र तभी बन सकता है जब देश में जाति वर्ग के आधार पर भेदभाव ना हो और आपसी भाईचारा बना रहे साथ ही अभिव्यक्ति का अधिकार व समाज व आर्थिक भेदभाव व अवसर की समानता रहे इसीलिए उन्होंने भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथो को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि उनमें उन्हें समानता नहीं मिली इसीलिए उन्होंने अपने लोगों से धार्मिक कर्मकांडों से दूर रहने की सलाह दी, उनका मानना था कि भारत की सबसे बड़ी समस्या जाति व वर्ण व्यवस्था है और धर्म जो ग्रंथ इसका समर्थन करते हैं, उनका बहिष्कार कर देना चाहिए भगवान बुद्ध की तरह उन्होंने कहा कि मेरी पूजा मत करो मेरे विचारों पर चलो तभी इस देश से भेदभाव है और असमानता दूर हो सकती है देखा जाए तो बाबा साहब भगवान बुद्ध का आधुनिक स्वरूप थे अगर हमें उन्हें पाना है तो उनको मानने से ज्यादा उनको जानना पड़ेगा व उनके मार्ग पर चलना पड़ेगा तभी हम सच्चे अंबेडकरवादी हो सकते हैं।

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