जस्टिस यशवंत वर्मा अब तक दर्ज नहीं हुई प्राथमिकी

उपराष्ट्रपति  जगदीश धनखड़ ने उठाए सवाल

जस्टिस यशवंत वर्मा अब तक दर्ज नहीं हुई प्राथमिकी

  • कहा- एक संज्ञेय अपराध में कानून के तहत एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य
  • संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही ऐसे मामलों में देता है छूट
  • राष्ट्रपति को निर्देश देना असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उपराष्ट्रपति ने उठाए सवाल

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी बरामदगी मामले में अब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि एक संज्ञेय अपराध में कानून के तहत एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है और संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही ऐसे मामलों में छूट प्रदान करता है। 

धनखड़ ने कहा कि एक महीना बीत जाने के बाद भी हमें नहीं पता की मामले में जांच कहां तक पहुंची है। धनखड़ ने आज उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा इंटर्न के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि मामले को प्रकाश में आए एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक इसमें कोई जांच प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। घटना के सात दिन बाद मामला मीडिया में आने के बाद ही प्रकाश में आया था। कानून के शासन के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में उसकी आपराधिक न्याय प्रणाली की शुद्धता उसकी दिशा निर्धारित करती है। 

आपराधिक मामलों में सबसे पहले एफआईआर दर्ज किया जाना जरूरी है। यह नियम स्वयं उन पर और बाकी सभी पर लागू होता है। एक संज्ञेय अपराध में एफआईआर दर्ज न करना भी एक अपराध है, लेकिन हम सबके मन में एक प्रश्न है कि अभी तक फिर एफआईआर क्यों दर्ज नहीं हुई है। उप राष्ट्रपति ने कहा कि एक जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले संबंधित न्याय तंत्र से अनुमति लेनी जरूरी कर दिया गया है हालांकि संविधान में इसका कोई जिक्र नहीं है। संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही इस तरह की छूट प्रदान करता है। उन्होंने सवाल किया कि कैसे कानून से भी ऊपर एक श्रेणी बना दी गई जिसके पास इस तरह की प्रतिरक्षा है। उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरी है कि तीन मौलिक स्तंभ- विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका- बोर्ड से ऊपर हैं। वे पारदर्शी और जवाबदेह हैं। वे बड़े पैमाने पर उच्चतम मानकों का अनुकरण करने वाले लोगों को उदाहरण देते हैं और इसलिए, समानता का सिद्धांत, कानून के समक्ष समानता की अवहेलना की गई है।

उपराष्ट्रपति ने इस मामले की जांच के लिए बनाई गई तीन जजों की समिति पर भी सवाल खड़े किए । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्य सरकार के विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंजूरी की न्यायिक समीक्षा की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए, जिसमें राष्ट्रपति को राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयकों पर विचार के लिए तीन महीने का समय तय किया गया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या का अधिकार है लेकिन ऐसी कोई स्थिति नहीं हो सकती जहां राष्ट्रपति को निर्देशित किया जा सके और वह भी किस आधार पर। धनखड़ ने आज उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा इंटर्न के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा होता है। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव की शपथ लेते हैं। यह शपथ केवल राष्ट्रपति और उनके द्वारा नियुक्त राज्यपालों द्वारा ली जाती है। वहीं उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, न्यायाधीश ये सभी संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है।

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्यायह्व सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कोई भी आदेश पारित करने की शक्ति रखता है। धनखड़ ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में यह दिन भी देखना पड़ेगा। उपराष्ट्रपति ने कड़े शब्दों में कहा कि राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा गया है। ऐसा नहीं करने पर विधेयक अपने आप कानून बन जाएगा। उन्होंने कहा, हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा। यह सवाल नहीं है कि कोई समीक्षा दायर करे या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र नहीं चाहा था। 

उन्होंने कहा, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्यपालिका का काम करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संवैधानिक विषयों पर पांच या उससे अधिक न्यायाधीश फैसला लेते हैं। उन्होंने कहा, ह्लजिन न्यायाधीशों ने राष्ट्रपति को वस्तुत: एक आदेश जारी किया और एक परिदृश्य प्रस्तुत किया कि यह देश का कानून होगा, वे संविधान की शक्ति को भूल गए हैं। न्यायाधीशों का वह समूह अनुच्छेद 145(3) के तहत किसी चीज से कैसे निपट सकता है। अगर इसे संरक्षित किया जाता तो यह आठ में से पांच के लिए होता। हमें अब उसमें भी संशोधन करने की जरूरत है। आठ में से पांच का मतलब होगा कि व्याख्या बहुमत से होगी। खैर, पांच का मतलब आठ में से बहुमत से ज्यादा है लेकिन इसे अलग रखें।

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