नावों से हो रहा दीमकों का प्रसार, सालाना 40 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान

नावों से हो रहा दीमकों का प्रसार, सालाना 40 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान

नई दिल्ली। दीमक का प्रकोप अब केवल प्राकृतिक मार्गों या स्थानीय निर्माण स्थलों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर इसका एक नया और चिंताजनक स्वरूप सामने आया है। अमेरिका स्थित फोर्ट लॉडरडेल रिसर्च एंड एजुकेशन सेंटर (एफएलआरईसी) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि इंसान अनजाने में दीमकों को निजी नावों के माध्यम से एक देश से दूसरे देश तक पहुंचा रहे हैं। यह न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से खतरनाक है, बल्कि आर्थिक स्तर पर भी गंभीर नुकसान का कारण बन रहा है।
 
दीमकों के लिए आदर्श ट्रांसपोर्ट वाहन बनीं नावें
अध्ययन में तीन प्रमुख आक्रामक दीमक प्रजातियों फॉर्मोसन सबटेरेनियन टर्माइट, एशियाई सबटेरेनियन टर्माइट और वेस्ट इंडियन ड्राईवुड टर्माइट के नावों के जरिए अंतरराष्ट्रीय प्रसार पर गहराई से प्रकाश डाला गया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि मनोरंजन और निजी उपयोग के लिए प्रयुक्त नावें इन दीमकों के लिए आदर्श ट्रांसपोर्ट वाहन बन चुकी हैं, जिससे ये कीट एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक फैल रहे हैं। नाव किसी तटीय इलाके में रुकती है, दीमक वहां के पर्यावरण में घुलमिल जाते हैं। बाद में ये स्थानीय वनस्पतियों और इमारतों पर आक्रमण कर देते हैं।
 
अर्थव्यवस्था पर गहरा असर
शोध के अनुसार केवल 2020 से अब तक दीमकों के कारण दुनियाभर में हर साल 40 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हो रहा है। विशेष रूप से फॉर्मोसन दीमक ही अकेले 20.3 से 30 अरब डॉलर के बीच नुकसान के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। इस नुकसान में इमारतों की मरम्मत, संक्रमित पेड़ों की कटाई, भूमि पुनर्विकास, और कीटनाशक उपायों पर खर्च होने वाली राशि शामिल है।

 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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