शिमला में चार और शिक्षक निलंबित
शिक्षकों के प्रदर्शन पर शिक्षा विभाग की सख्ती जारी
शिमला । राजधानी शिमला में प्राथमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर 26 अप्रैल को हुए प्रदर्शन के बाद शिक्षा विभाग ने कार्रवाई और तेज कर दी है। विभाग ने चार और प्राथमिक शिक्षकों को निलंबित कर दिया। इससे पहले छह शिक्षकों पर निलंबन की गाज गिर चुकी है। अब तक कुल दस शिक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो चुकी है।
स्कूल शिक्षा निदेशक आशीष कोहली द्वारा जारी आदेशों के अनुसार निलंबित शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे अपनी निलंबन अवधि के दौरान निर्धारित मुख्यालय पर मौजूद रहें और बिना अनुमति के मुख्यालय न छोड़ें।
निलंबित शिक्षकों में जिला कांगड़ा के जीसीपीएस उस्तेहर रढ के सेंटर हेड टीचर अनिल कुमार, जिला शिमला के जीपीएस दीम के जेबीटी प्रमोद चौहान, जिला ऊना के जीपीएस सिध चलेहार की हेड टीचर सुनीता शर्मा और जिला मंडी के जीपीएस टांडी के जेबीटी हेम राज शामिल हैं।
इन शिक्षकों के मुख्यालय भी तय कर दिए गए हैं। अनिल कुमार को बीईईओ इंदौरा (जिला कांगड़ा), प्रमोद चौहान को सीएचटी जीसीपीएस धरचनाना (ईबी कुफरी, जिला शिमला), सुनीता शर्मा को सीएचटी जीसीपीएस बुडहन (ईबी बंगाणा, जिला ऊना) और हेम राज को सीएचटी कमलाह फोर्ट (ईबी धर्मपुर-दो, जिला मंडी) में उपस्थित रहना होगा।
यह कार्रवाई सिविल सेवा (वृत्ताचार और आचरण) नियमावली, 1965 के तहत की गई है। निलंबन अवधि में सभी शिक्षकों को नियमानुसार निर्वाह भत्ता प्रदान किया जाएगा। विभाग ने संबंधित जिला अधिकारियों को आदेशों के अनुपालन के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं।
इधर, प्राथमिक शिक्षकों का शिक्षा निदेशालय के बाहर क्रमिक अनशन भी जारी है। हर दिन 5 से 6 शिक्षक अनशन पर बैठ रहे हैं। प्रदर्शनकारी शिक्षक निदेशालयों के पुनर्गठन के फैसले का विरोध कर रहे हैं।
राज्य सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि निदेशालयों के पुनर्गठन के खिलाफ किसी भी प्रकार के आंदोलन या सार्वजनिक विरोध को गंभीरता से लिया जाएगा। शिक्षा विभाग ने निर्देश दिए हैं कि प्रदर्शन में भाग लेने वाले शिक्षकों की पहचान कर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। साथ ही जो शिक्षक ऑनलाइन कार्य और उपस्थिति दर्ज नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ भी सख्त कदम उठाने को कहा गया है।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में शिक्षा निदेशालयों के पुनर्गठन का निर्णय लिया है। सरकार का कहना है कि यह एक नीतिगत फैसला है जिसका सभी कर्मचारियों को पालन करना अनिवार्य है। वहीं प्राथमिक शिक्षक संघ इस फैसले को शिक्षक हितों के विरुद्ध बताते हुए इसका विरोध कर रहा है।
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