
-सोशल डिस्टेंसिंग के साथ श्रद्धालुओं ने किया स्नान, लगाये अरदास
लखनऊ। सोमवार को लखनऊ यानी लक्ष्मणनगरी कोरोना काल के बावजूद कार्तिक पूर्णिमा व गुरू नानक जयंती जैसे दो प्रमुख पर्व के आयोजन और उसकी आस्था में तन्मयता के साथ डूबी दिखायी दी। सुबह तड़के होने के साथ ही शहर के छोटे-बडेÞ गोमती तटों पर स्नान करने वालों का रेला लगना शुरू हो गया। हालांकि कोरोना महामारी के चलते बीते वर्ष के मुकाबले इस बार उतनी भीड़ नहीं रही। घाटों पर स्नान और गुरूद्वारे में अरदास के दौरान श्रद्धालुओं ने सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन किया। दूसरी तरफ राजधानी के नाका स्थित गुरूद्वारे में सुबह से ही शबद-कीर्तन और लंगर के आयोजन शुरू हो गये। खासकर सिक्ख समुदाय के लोग जो राजधानी के अलग-अलग जगहों जैसे-आलमबाग, नाका, अमीनाबाद, राजाजीपुरम, गोमतीनगर, इंदिरानगर, अलीगंज, आशियाना आदि क्षेत्रों में रहते हैं, उन लोगों ने बच्चे-बुजुर्ग और महिलाओं के साथ बडेÞ ही हर्षोल्लास से नानक पर्व यानी प्रकाश पर्व मनाया। दो प्रमुख पर्व को लेकर स्थानीय प्रशासन के अलावा लखनऊ कमिश्नरेट की पुलिस टीम भी सतर्क रही। चौक-चौराहों सहित अन्य धार्मिक स्थलों पर भी सुरक्षा की अलग-अलग तरीके से व्यवस्थायें दिखीं।
‘कतकी मेला’ को लगा कोरोना का ग्रहण!
लखनऊ। कोरोना के चलते इस बार कतकी मेला स्थगित कर दिया गया है। देव दीपावली की खास रौनक मनकामेश्वर उपवन घाट पर दिखाई दी, जहां दो लाख से अधिक मिट्टी व गोमय दीपों का दान करने के साथ गोमती आरती की गयी। आयोजन को लेकर रविवार को दिन भर महंत देव्यागिरि की देखरेख में घाट के किनारे पताका लगाने, दीये सजाने, सजावट का काम चलता रहा।वहीं, सनातन महासभा की ओर से झूलेलाल घाट पर डॉ. प्रवीण त्रिपाठी की देखरेख में दीपदान हुआ। यहां 1008 दीये जल में प्रवाहित किये गये, जबकि 2100 दीयों का दीपदान और आरती हुई। पूर्णिमा पर गोमा के किनारे झूलेलाल घाट पर लगते चले आ रहे कतकी मेले की रौनक से इस बार शहर अछूता ही रहा। यहां कतकी मेला कार्तिक पूर्णिमा से 45 दिनों तक होता है।लेकिन इस बार कोरोना के कहर से लगातार बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए सरकार की अनुमति न मिल पाने के कारण प्रशासन ने इस बार कतकी मेले को लगने नहीं दिया। बताते हैं कि इस मेले में मिट्टी के खिलौने, बर्तन, मूर्तियां, कलाकृतियां, कांच का विविध सामान, लकड़ी के खिलौनों से लेकर तरह-तरह की वस्तुएं, लोहे के बर्तन-औजार, घरेलू सामान, मसाले, जाड़ों का बिस्तर, नई-पुरानी काट के कपड़े, और भी कई चीजें मौजूद होती थी। इस मेले में खूब भीड़ जुटती है। मेले का आनंद अधिकतर गरीब-गुरबे और निम्न मध्य वर्ग के लोग लेते हैं, लेकिन कतकी मेले में शहरी मध्य और उच्च वर्ग के लोग भी दुर्लभ होती पुरानी शैली की सामग्री खरीदने पहुंचते थे।