बेरोज़गार बाप की सहारा बनी 15 वर्षीय बेटी सविता : फारूखी 

बेरोज़गार बाप की सहारा बनी 15 वर्षीय बेटी सविता : फारूखी 

नई दिल्ली/ गाजियाबाद। शाहदरा स्थित अंबेडकर कैम्प में 15 वर्षीय बेटी सविता के पिता बेरोज़गार और कमज़ोर हैं, बिटियाि सविता हायर सेकंडरी है बाप का सहारा बनीं, सविता ठेली पर नमकीन बेचती है और अग्रेंजी भी बोलती है, बेरोज़गार बाप का सहारा बनी हुई है।

ये कैसी व्यथा है, प्रतिभा सड़कों पर घूमती है और क़िस्मत नर्म गद्दों पर सोती है ,सविता ने जनसेवक निगार फ़ारूखी से कहा कि वो भी पढ़ लिखकर कुछ करना चाहती है, साथ ही बेटी सविता समाज सेवा भी करना चाहती है किंतु क़िस्मत ने उसे ठेली पकड़ा दी। बेटी सविता ने जनसेवक निगार फारूखी को कॉलोनी के बारे में भी बताया, सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली में साफ़ सफ़ाई एक बड़ी समस्या भी और चुनौती भी है क्यों कि कुर्सी पर विराजमान जनप्रतिनिधि सुनते नहीं हैं बस उन्हें कुर्सी चाहिए। दूसरी तरफ वहीं पर रहने वाले सुभाष ने बताया कि उनके घर के आगे की नाली वर्षों से साफ़ नहीं हुई है और वो नाली पर ही फटटा लगाकर सिलाई का काम करते हैं। उन्होंने बताया कुछ दिन पहले निगम के अधिकारी आए थे तब उस दौरान सुभाष ने उनसे सफ़ाई की बात कही तो उन्होंने हैरान करने वाली बात कही उनहोंने कहा अपने आप कर लो है न अजीब बात, हालांकि इन सब बातों को सुनकर जनसेवक ने उनसे कहा अगर वो दोबारा आएं तो उनसे एक काग़ज़ पर उनका यह कथन ले लें, इसी को कहते हैं घोर अंधकार क्यों कि न यो जनप्रतिनिधि काम करते हैं और न अधिकारी सुनते हैं।

पता नहीं कौन था वो जिसने कहा था काम ही पूजा है, बस ये तो कहने भर की बात है असलियत क्या है ये काॅलोनियों में पहुंच कर देखिये सब दूध का दूध और पानी का पानी आपके सामने आएगा, सबसे अधिक अचंभित करने वाली बात तो ये है कि अधिकारी कर्मचारी मोटा वेतन तो लेते हैं लेकिन जिस काम का उन्हें वेतन मिलता है वो काम उनकी बला से, दुनियां भर की सुविधाएं लेते हैं बस अगर कुछ करते हैं तो काम ही नहीं करते आखिर इनके लिए उपाय तो ढूंढना ही पड़ेगा।

सही मायने में देखा जाए तो खींच लेनी चाहिए इनकी कुर्सी ख़त्म कर देनी चाहिए इनकी समस्त सुविधाएं फिर देखो इस बात का क्या असर पड़ेगा, इन सब बातों को साझा करते हुए जनसेवक निगार फारूखी ने कहा कि वह गरीबों की लड़ाई लड़ रही हैं और यूं ही लड़ती रहेंगी, और गरीबों को इंसाफ दिलाने की ठानी है तो पीछे मुड़कर नहीं देखना है।

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