गुरुग्राम में थैलेसीमिया उन्मूलन अभियान में शामिल हुए अभिनेता जैकी श्रॉफ
गुरुग्राम । खून संबंधी बीमारी थैलेसीमिया को देश से खत्म करने के लिए फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने रविवार को रेड रन टू एंड थैलेसीमिया नाम से मैराथन का आयोजन किया। पांच किलोमीटर कि इस दौड़ में गुरुग्राम के अनेक चर्चित लाेगाें ने बड़ी संख्या में लोगों के साथ हिस्सा लिया। इस अभियान को समर्थन देने के लिये बॉलीवुड एक्टर जैकी श्रॉफ भी पहुंचे।
इस मौके पर फिल्म अभिनेता जैकी श्राॅफ ने पत्रकारों से बातचीत की। एक्टर श्रॉफ ने अपने अनुभव को साझा करते हुए भावुक अंदाज में कहा कि उन्होंने थैलेसेमिया से पीड़ित एक छोटे बच्चे को अस्पताल में देखा था। उसके हाथ और पैर में सूइयों के अनेक निशान थे। वह दृश्य डरावना था। इसलिए थैलेसीमिया का उन्मूलन का अभियान किसी एक डॉक्टर अस्पताल या मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों की नहीं, बल्कि हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। जो इस बीमारी की गंभीरता जानता है, उसे दूसरे को इसके बचाव के तरीके को बताना होगा। श्रॉफ ने कहा कि मैं और मेरा पूरा परिवार थैलेसीमिया पीड़िताें के लिए लोगों को जागरूक करेंगे, लेकिन इस काम में मीडिया को भी गंभीरता से काम करते हुए लोगों को जागरूक करना होगा।
इस माैके पर डॉक्टर राहुल भार्गव ने बताया कि भारत में हर साल लगभग 10 से 15 हज़ार बच्चे पैदा होते समय थैलेसीमिया की बीमारी से ग्रसित होते हैं। यह जेनेटिक बीमारी है। इसलिए इसकी रोकथाम बच्चे की पैदाइश के वक़्त ही की जानी चाहिये। अगर मात-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले थैलेसीमिया की जांच करा लेते हैं तो समय पर इसका उचित इलाज हो जायेगा। अगर किसी महिला ने गर्भधारण भी कर लिया हो तो उस स्थिति में भी जांच कराई जा सकती है। अगर टेस्ट में बच्चा मेजर थैलेसीमिया से पाया जाय तो अबॉर्शन का विकल्प भी अपनाया जा सकता है।
डॉक्टर भार्गव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कोरोना के प्रति देशवासियों को जागरूक किया, उसी तरह उन्हें थैलेसेमिया को लेकर भी अपनी मन की बात कार्यक्रम में करनी चाहिये, जिसे देशवासी इस समस्या के प्रति जागरूक हो सकें।कार्यक्रम में फॉर्टिस हॉस्पिटल के हेमेटोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉक्टर विकास दुआ ने भी थैलेसीमिया को लेकर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया के पीड़ित बच्चों का खून हर तीन से चार सप्ताह के भीतर बदलवाना पड़ता है, जिससे पीड़ित के परिवार पर बेतहाशा आर्थिक बोझ बढ़ता है। आज इस बीमारी का बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए उचित उपचार संभव है, लेकिन लाखों रुपये के उपचार की इस पद्धति को हम क्यों अपनाएं। जेनेटिक काउंसलिंग और ब्लड टेस्टिंग के आधार पर ही थैलेसीमिया के पीड़ित बच्चों का जन्म रोका जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के समर्थन की भी जरूरत है, ताकि साल 2035 तक हम देश को थैलेसीमिया से मुक्त करने के अपने संकल्प को वास्तविकता में बदल सके।
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