जानें कैसे यज्ञ और हवन से होती है ऑर्गेनिक खेती?

Learn how organic farming is done through Yagya and Havan?

कानपुर. अनादि काल से यज्ञ और हवन के माध्यम से तन, मन और वातावरण का शुद्धिकरण करना वेद और पुराण भी बताते हैं. वहीं आज जब वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है, तो ऐसे में एक बार फिर से पुरानी संस्कृति को जागृत किया जा रहा है. यज्ञ और हवन के माध्यम से न सिर्फ वातावरण को शुद्ध किया जा रहा है बल्कि इसके माध्यम से कृषि क्षेत्र को भी आगे बढ़ाया जा रहा है.

जहां एक और आज केमिकल युक्त खेती की जाती है जिसमें ज्यादा पैदावार के लिए फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड मिलाकर खेती की जाती है, तो वहीं अब लोग जागरूक होने के साथ ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. इसी प्रकार की एक ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत देश में तेजी के साथ शुरू हो रही है, जिसको अग्निहोत्र खेती कहते हैं. इसमें यज्ञ से सुबह शाम आहुति देकर वातावरण को शुद्ध किया जाता है. इसी यज्ञ की राख में गाय का गोबर और गोमूत्र मिलाकर खाद तैयार की जाती है, जो खेती में डाली जाती है. ये खाद ना सिर्फ फसलों में लगने वाले कीड़ों को खत्म करती है बल्कि अच्छी पैदावार करने में भी मदद करती है.

ऐसे हुई शुरुआत
देशभर में इस खेती को आगे बढ़ाने वाले और अब अपनी खुद की एक के स्टार्टअप कंपनी शुरू करने वाले पंकज मिश्रा ने बताया कि उनके पिता ने कानपुर में 1991 में इस खेती की शुरुआत की थी. उनके पिता आर मिश्र कानपुर के चंद्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर तैनात थे. उन्होंने अपने फार्म में वरुणा राई की फसल में इस कृषि पद्धति अग्निहोत्र का प्रयोग किया था, जिसके रिजल्ट बेहद अच्छे थे. इसके बाद उन्होंने देश भर में इस खेती को बढ़ावा देने के लिए काम किया.

नौकरी छोड़ शुरू किया अग्निहोत्र का काम
पंकज ने बताया कि वह एक कंपनी में मार्केटिंग जॉब पर थे, लेकिन उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर अग्निहोत्र को बढ़ावा देने के लिए काम शुरू किया है. उन्होंने अपनी एक स्टार्टअप कंपनी भी खोली है जिसके माध्यम से वह देश भर में किसानों को जोड़ रहे हैं और अग्निहोत्र के बारे में बता रहे हैं. देश भर में लोग इस तरीके की खेती करना शुरू कर रहे हैं.

ऐसे करती है काम
पंकज ने बताया कि हम लोग जमीन को उपजाऊ करने के लिए तो काम करते हैं, लेकिन वातावरण को शुद्ध करने के लिए किसी का ध्यान नहीं जाता है. जबकि अनाज या फल को सबसे ज्यादा खतरा वातावरण से रहता है. वह वातावरण में ही पैदा होता है. ऐसे में वातावरण का शुद्ध होना सबसे जरूरी है. अग्निहोत्र के माध्यम से 5 फीसदी जमीन की से फल को शुद्धता मिलती है, तो वहीं 95 फीसदी वातावरण से शुद्धता मिलना जरूरी है.

ऐसे होता है अग्निहोत्र तैयार
अग्निहोत्र खेती करने के लिए 1 एकड़ जमीन में बीच में एक यज्ञ वेदी तैयार की जाती है. जहां पर रोजाना सुबह शाम रोजाना 2 मिनट यज्ञ किया जाता है, जिसमें चावल और देसी गाय के घी की आहुति डाली जाती है. इससे निकलने वाली राख को गाय के गोबर और गोमूत्र में मिलाकर खाद तैयार की जाती है, जो फसलों में डाली जाती है. इससे जमीन का शुद्धिकरण होता है, तो वहीं रोजाना सुबह-शाम यज्ञ की वजह से वातावरण सात्विक और शुद्ध होता है.