विज्ञान का कमाल! 12 हजार साल पहले विलुप्त भेड़ियों की नस्ल फिर हुई पैदा
By Tarunmitra
On
नई दिल्ली। सदियों से भेड़ियों ने शिकार करके अपना पेट भरा. और कालांतर में जब मनुष्यों का दबदबा बढ़ा, तो भेड़िये आसान खाने और गर्माहट के लिए इंसानों के साथ रहने लगे. इस प्रक्रिया को domestication कहा गया. यानी घरेलूकरण. भेड़ियों की एक खास प्रजाति मनुष्यों के साथ रहने लगी. वो आकार में छोटे थे. जो हमारी बसाहटों में चले आए, वो कुत्ते हुए. और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा - ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते. और जो जंगलों में रह गए, वो भेड़िये ही रहे. वो ही भेड़िये, जिनके नाम पर 'भेड़िया आया-भेड़िया आया" की कहानी लिखी गई.
लेकिन इन सबसे अलग भेड़ियों की एक और ब्रीड थी. ज्यादा बड़ी. ज्यादा मजबूत और ज्यादा खूंखार. ये ब्रीड बर्फ में रहती, लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा कि आज से साढ़े 12 हजार साल पहले वो विलुप्त हो गए. विलुप्त ऐसे कि उनके जीवाश्मों के अलावा हमारे पास उनकी मौजूदगी का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं था. लेकिन एक लैब, कुछ वैज्ञानिक, कुछ उपकरण और सालों की मेहनत. और फिर सामने आए उसी विलुप्त भेड़िये के कुछ शावक. वैज्ञानिकों की अथक मेहनत खुली.
लोगों को याद आई स्टीवन स्पीलबर्ग की साल 1993 में आई मूवी जुरासिक पार्क. जब लाखों साल पुराने जीवाश्मों को रीवायर करके विलुप्त डायनासोर्स को जन्म दिया गया था. इस रीकाल वैल्यू के साथ कुछ वाजिब सवाल भी जन्मे. सवाल ऐसे कि क्या हम प्रकृति की चाल को बदल रहे हैं? जो जीवों के विकास में विलुप्त हो चुके हैं, उन्हें क्यों जिलाना? और जिलाना है ही, तो खोज कहाँ जाकर खत्म होगी. तो आज जानेंगे कहानी लैब में जन्मे विलुप्त भेड़ियों डायर वुल्फ़ की.
प्रयोगशाला के बगल में उपन्यास लेखन
5 जुलाई 1996. इस दिन स्कॉटलैंड में मौजूद यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा में एक क्लोन भेड़ का जन्म हुआ. इस भेड़ को नाम मिला - डॉली. डॉली को एक अन्य भेड़ के शरीर से निकली सेल्स यानी कोशिकाओं की नकल करके - यानी क्लोन करके बनाया गया था.
ऐसा नहीं था कि डॉली अपने तरह का पहला एक्सपेरिमेंट था. जीव जंतुओं की क्लोनिंग के प्रयास पहले भी हुए थे. और सफल भी हुए थे. लेकिन स्तनपायी जानवरों में ये इस तरह का पहला एक्सपेरिमेंट था, जहां एक वयस्क सेल की मदद से क्लोन बनाया गया था. स्तनपायी का अर्थ वो जीव हुए, जिनके पास स्तन हैं, और दो जोड़ी हाथ पैर हैं. विज्ञान की भाषा में इन्हें मैमल्स कहा जाता है. इन जंतुओं की संरचना बाकी जीव जंतुओं की तुलना में कठिन होती है. हम मनुष्य भी यही मैमल्स हैं.
तो जब डॉली का जन्म हुआ, तो वैज्ञानिकों को समझ आया कि प्रयोगशालाएं जीवन की उत्पत्ति में भी काम आ सकती हैं. लेकिन जिस साल डॉली का जन्म हुआ था, उस साल एक और कमाल की घटना हो रही थी. अमेरिका के न्यू जर्सी में भारी काया-चश्मा लिए जॉर्ज रेमंड रिचर्ड मार्टिन अपने टुटहे टाइपराइटर पर एक उपन्यास का फाइनल ड्राफ्ट पूरा कर रहे थे. इसी साल कुछ ही महीनों बाद ये उपन्यास छपकर आ गया. फिर साल-दो साल पर जॉर्ज मार्टिन अपने उपन्यास की एक-एक कड़ी करके मार्केट में उतारते रहे. सारी कड़ियों को मिलाकर महाउपन्यास बना - नाम पड़ा A Song of Ice and Fire
विंटर इज़ कमिंग
फिर साल 2011 में जॉर्ज बाबू के उपन्यास के आधार पर टीवी नेटवर्क HBO पर एक टीवी शो शुरू हुआ. ये शो ऐसा था कि आपको जो भी कैरेक्टर पसंद आने लगता, अगले एपिसोड में उसकी मौत हो जाती. शो का नाम - गेम ऑफ थ्रोन्स. अगर आपने ये शो देखा होगा, तो ध्यान होगा कि इसमें ड्रैगन हैं, बर्फीले राक्षस हैं और है आकंठ खून खराबा. लेकिन इस शो में एक और बात आपने गौर की होगी. जो नॉर्थ में स्टार्क फैमिली है, उसके पास 6 सफेद रंग के भेड़िये हैं. सारे जॉन स्नो समेत सभी स्टार्क भाई बहन एक-एक भेड़ियों को आपस में बाँट लेते हैं. तीन भेड़िये अपनी-अपनी वजहों से मारे जाते हैं. और तीन ही जीवित बचते हैं. टीवी शो में दिखाई गई भेड़ियों की ये प्रजाति डायरवुल्फ़ की थी.
वही डायरवुल्फ़, जो आज से करीब साढ़े 12 हजार साल पहले तक उत्तरी अमेरिका के कनाडा, अमेरिका और मेक्सिको वाले इलाकों में, और दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला में पाए जाते थे.
जैव विकास की प्रक्रिया में ये डायरवुल्फ़ विलुप्त हो गए. 18वीं-19वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने अलग-अलग इलाकों से इनके जीवाश्म यानी fossil खोजे. और इनके आधार पर डायरवुल्फ़ की काया, उनके जीने के तरीकों और उनके जेनेटिक्स के बारे में जानकारी मिली. तब जाकर किस्सों-कहानियों-तस्वीरों में इन भेड़ियों को जगह मिली. जब गेम ऑफ थ्रोन्स के प्लॉट में इन भेड़ियों को घुसाया गया, तो किसी को नहीं पता था कि एक दशक बीतने के बाद ये भेड़िये कथानकों से बाहर आएंगे. और सशरीर हमारे बीच मौजूद होंगे.
गरम प्रदेश टेक्सास में बर्फप्रेमी डायरवुल्फ़ का जन्म
7 अप्रैल 2025. इस दिन टाइम मैगजीन ने अपने अगले अंक का कवर जारी किया. दरअसल टाइम मैगजीन, हर 15 दिनों पर, यानी fortnightly, अपना एक अंक लेकर आती है. मैगजीन के कवर पर बहुत बहस्तलब होते हैं. कवर पर जिन घटनाक्रमों या व्यक्तियों की तस्वीर छापी जाती है, वो लोग या घटनाक्रम उन 15 दिनों में सबसे अधिक चर्चा में होते हैं, या ध्यान देने योग्य होते हैं.
तो 7 अप्रैल के दिन टाइम्स ने अपने अगले इशू का कवर शेयर किया. कवर पर एक सफेद रंग के डायरवुल्फ़ की तस्वीर थी. और साथ लिखा था - ये रेमस है, बीते दस हजार सालों का पहला जीवित डायरवुल्फ़. दरअसल अमेरिका की एक बायोटेक कंपनी से जुड़े वैज्ञानिकों ने महीनों के रीसर्च के बाद डायरवुल्फ़ के तीन शावक पैदा किये. ये कैसे संभव हुआ?
अमेरिका में एक राज्य है टेक्सास. यहाँ एक जिला लगता है डैलस. इसी डैलस में कोलोसल लैब एंड बायोसाइंसेज़ नाम की एक बायोटेक कंपनी है. साल 2021 में अरबपति बेन लैम और जेनेटिक्स क्षेत्र के माहिर वैज्ञानिक जॉर्ज चर्च ने ये कंपनी शुरू की. धीरे-धीरे सौ से ज्यादा वैज्ञानिक इस कंपनी का हिस्सा बने.
इस कंपनी ने अपनी पैदाइश के साथ ही अपना मोटो साफ कर दिया - de-extinction. यानी विलुप्त हो चुके जीवों को फिर से वापिस लाया जाए. और कंपनी ने तीन जीवों के बारे में बताया, जिन्हें इस de-extinction प्रोग्राम के तहत वापिस लाया जाना था.
1 - लगभग 10 हजार सालों से विलुप्त वूली मैमथ
2 - करीब 90 सालों से विलुप्त तस्मानियन टाइगर
3 - करीब 400 सालों से विलुप्त डोडो बर्ड
लेकिन मार्च 2025 के आखिरी हफ्तों में कंपनी ने ऐलान किया कि उन्होंने सफलता के साथ डायरवुल्फ़ की प्रजाति विकसित कर ली है. ध्यान रहे कि ये कोलोसल का वो प्रोजेक्ट था, जिसके बारे में उन्होंने खुलकर कोई बात नहीं की थी. कोलोसल ने अपने बयान में कहा कि कंपनी के पास डायरवुल्फ़ के कुल तीन शावक मौजूद हैं.
जैसे ही ये खबर आई, टाइम मैगजीन के पत्रकार जेफ़री क्लूगर और रॉबर्ट क्लार्क ने कोलोसल के लोगों से संपर्क किया. कोलोसल ने पत्रकारों को अमरीकी वनविभाग की एक फसिलिटी में मिलने के लिए बुलाया. इस फसिलिटी की लोकेशन सामने नहीं रखी गई, क्योंकि इससे वहाँ मौजूद डायरवुल्फ़ शावकों पर शिकारियों की नजर पड़ सकती थी. इसी फसीलिटी में टाइम की टीम का तीन शावकों से सामना हुआ. उनके नाम - मेल डायरवुल्फ़ रोमुलस, रेमस और उनकी बहन खलीसी.
जेनेटिक इंजीनियरिंग से पैदा हुए भाई-बहन
लेकिन हजारों सालों से खोए हुए भेड़ियों को जिलाने के लिए क्या टेकनीक लगाई गई? ये पेचीदा वाला पार्ट थोड़ा समझते हैं. और इसे समझने के लिए जानते हैं कि जीन क्या चीज होती है? "जीन आनुवांशिकता की बुनियादी इकाई है. जीन हमारे शरीर का एक ऐसा हिस्सा होता है जो किसी हमारे शारीरिक विकास और व्यवहार को नियंत्रित करता है. और यह माता-पिता से बच्चे को विरासत में मिलता है."
ये जीन का ही कमाल होता है कि बच्चों की नैन-नक्श, काया या रंग के कुछ-कुछ हिस्से अपने माँ और पिता से मिलते हैं. और ये जीन सिर्फ मनुष्यों में नहीं मिलता है. ये इस धरती पर मौजूद हरेक जीवित इकाई में मिलता है. चाहे, वो इंसान हों, जानवर हों, या पेड़-पौधे हों. सभी को अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए अपने जीन की आवश्यकता होती है. एक मनुष्य के शरीर में 20 से 25 हजार तक जीन्स होते हैं, जबकि एक भेड़िये के शरीर में लगभग 13 हजार.
जीन के साथ एक और ट्रिविया सुलझाते हैं - DNA क्या है? DNA का फुलफ़ॉर्म है - Deoxyribonucleic acid. DNA हमारे शरीर की असंख्य छोटी-छोटी कोशिकाओं या सेल्स में पाया जाने वाला ऐसा कण है, जिसमें हमारे शरीर की सारे जीन निहित होते हैं. यानी हम ये कह सकते हैं कि जीन, DNA का एक हिस्सा होता है. ये जो DNA होता है, वो हमारे शरीर के रक्तरहित हिस्सों, जैसे बाल, दांत, नाखून, सलाईवा, वीर्य, वैजाइनल डिस्चार्ज में भी पाया जाता है.
बेसिक्स क्लीयर. अब प्रोसेस पर वापिस आते हैं. डायरवुल्फ़ बनाने के लिए कोलोसल के वैज्ञानिकों को चाहिए थे DNA, जिसमें से जीन निकालकर प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके. इसके लिए डायरवुल्फ़ के दो जीवाश्मों का उपयोग किया गया.
1 - ओहायो में मिली डायरवुल्फ़ की एक खोपड़ी में मौजूद दांत
2 - इडाहो में मिली डायरवुल्फ़ के कान की हड्डी
इन दोनों जीवाश्मो से DNA निकालकर स्टडी की गई. इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने आमतौर पर पाए जाने वाले भेड़िये की प्रजाति कॉमन ग्रे वुल्फ के भी डीएनए की स्टडी की. दोनों तरह के भेड़ियों के DNA को पढ़ने के बाद वैज्ञानिकों को समझ में आया कि आम भेड़िये के 14 जीन्स में बदलाव किये जाएं, तो डायरवुल्फ़ को जन्म दिया जा सकता है.
और इसके बाद एक अलग दिशा में वैज्ञानिकों ने काम शुरु किया.
नसों से निकाला DNA
वैज्ञानिकों ने एक अन्य कॉमन ग्रे वुल्फ़ की रक्त धमनियों से DNA निकाला. इस DNA के उन 14 जीन्स में बदलाव किया, जिससे डायरवुल्फ़ बनाने की ओर बढ़ा जा सकता था. ये जीन डायरवुल्फ़ के बड़े आकार, सफेद खाल और बाल, बड़े सिर, बड़े दांत, शक्तिशाली कंधे और पैर, और आवाज को नियंत्रित करते थे.
ये कोई ऐसा काम नहीं था, जो एक दिन में हो गया. जीन कोई नंगी आँख से दिखने वाली चीज़ तो थी नहीं कि आसानी से कांटछाँट कर दी जाए. ये सारा काम शरीर में पाई जाने वाली सेल्स के केंद्र यानी न्यूक्लियस में किया जाता है, इसका ध्यान रखते हुए कि सेल जीवित बची रहे. वरना पूरी मेहनत बर्बाद हो जाती. ऐसे में इस काम को करने में महीनों का समय लगा.
सारी मेहनत के बाद वैज्ञानिकों के पास एक ऐसे न्यूक्लियस का प्रकार था, जिसमें वो सारे जीन मौजूद थे, जिससे एक डायरवुल्फ़ को जन्म दिया जा सकता था. और अपने सक्सेस रेट को बढ़ाने के लिए ऐसे 45 न्यूक्लियस बनाए गए थे. इन न्यूक्लियस को एक ऐसे सेल में ट्रांसफर किया गया, जिसके अंदर का पहले से मौजूद न्यूक्लियस निकालकर उसे Denucleated बना दिया गया था.
कुछ हफ्तों तक इन तमाम सेल्स को लैब में रखा गया. इस दौरान इनमें विभाजन शुरू हुआ. ये कोशिकाएं बँटीं. एक से दो, दो से चार, चार से आठ… और ऐसे लैब के भीतर एक भ्रूण बना. भ्रूण यानी वो जीवधारी, जो तमाम बदलावों से गुजरकर एक शिशु या शावक का रूप लेता है.
माँ के बिना जन्म कैसे?
ठीक इस मौके पर प्रयोगशाला की जरूरत कम थी, और माँ की कोख की जरूरत ज्यादा. और इसके लिए वैज्ञानिकों ने कुत्तों की एक विशेष प्रजाति विकसित की थी. इसमें कुत्ते को भेड़ियों के साथ मिक्स किया गया, ताकि एक बड़े आकार की माँ का निर्माण किया जा सके. बड़ी माँ होती, तो कोख में बड़े डायरवुल्फ़ को पालने की जगह भी बड़ी होती. तो पहले से तैयार भ्रूण को इस प्रजाति की बच्चेदानी में ट्रांसफर कर दिया गया.
अब शुरू हुआ इंतजार और देखरेख. माँ का खूब खयाल रखा गया, लगातार गहरी निगरानी में उन्हें रखा गया. और फिर आई 1 अक्टूबर 2024 की तारीख. 4 डॉक्टर्स की टीम ने सर्जरी के बाद माँ के पेट से दो डायरवुल्फ़ शावकों को बाहर निकाला. उन्हें साफ किया गया, और उनकी जांच की गई. सबकुछ स्वस्थ. नाम दिया गया - रोमुलस और रेमस. और इस तरह से तीन सालों की अथक मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने 12 हजार साल से खोए डायरवुल्फ़ को फ़िर से मानव सभ्यता के दर्शन कराए.
इस सफलता से वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास बढ़ा. और ये पूरी प्रक्रिया फिर से दुहराई गई. और 30 जनवरी 2025 को एक और डायरवुल्फ़ - खलीसी का जन्म हुआ. खबरों के मुताबिक, डायरवुल्फ़ अपने व्यवहार में आम कुत्तों या भेड़ियों की तरह नहीं हैं. वो आसपास मौजूद मनुष्यों के संपर्क में आने से बचना चाह रहे हैं.
अब क्या पैदा होगा? डायनासोर?
ये तो थी कहानी डायरवुल्फ़ भेड़ियों की. लेकिन आप कोलोसल की वेबसाइट पर जाएं, तो समझ आता है कि उनका अगला प्रोजेक्ट क्या है. ये प्रोजेक्ट है वूली मैमथ को रिवाइव करने का. मार्च 2025 में ही कंपनी ने जानकारी डी कि उन्होंने मैमथ के जीन की कॉपी तैयार कर ली है. और उस जीन और चूहे के जीन को मिक्स करके एक चूहे को जन्म दिया है. इसे मैमथ माउस कहते हैं. इस माउस के पास मैमथ जैसे हरे बाल हैं, और शरीर के अंदरूनी कलपुर्जे भी मैमथ जैसे ही काम करते हैं.
बात तो हो गई पुनर्जीवन की. ये निश्चय ही वैज्ञानिकों का हुनर है और उनका कौशल है. साल 2020 में जब जीन को काटने के लिए एक स्पेशल टाइप की जेनेटिक कैंची CRISPR/Cas9 के आविष्कार पर फ्रेंच वैज्ञानिक एमानुएल शापांतिए और अमरीकन वैज्ञानिक जेनिफर डोडना को केमिस्ट्री का नोबल दिया गया, तभी एक बहस शुरू शुरू हो गई थी. बहस ये कि क्या जीन से एडिटिंग और पुनर्जीवन की कवायद में हम एथिक्स को ताक पर रखने को तैयार हैं?
जैव विकास का सिद्धांत. क्या है ये जैव विकास?
दरअसल तमाम जीवों में पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव होते हैं, जिससे वे अपने वातावरण के अनुकूल हो जाते हैं. जो वातावरण के अनुकूल नहीं हो पाते हैं, वो प्राकृतिक चयन - या नैचुरल सेलेक्शन की प्रक्रिया में पीछे छूट जाते हैं. और समय के साथ गायब हो जाते हैं, वैसे ही जैसे कभी डायनासोर, या मैमथ सरीखे जानवर विलुप्त हुए. ब्रिटिश प्रकृति वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने 18 वीं सदी में इसको विस्तार से अपने Theory of Natural Selection में समझाया था. आपने स्कूल में पढ़ा भी होगा.
अब इस सिद्धांत के आधार पर चलें, तो आज से साढ़े 12 हजार साल पहले कुछ ऐसी परिस्थितियाँ रही होंगी, जिनकी वजह से डायरवुल्फ़ गायब हो गए थे. ये पूरी तरह के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत पर आधारित था लेकिन वैज्ञानिक उन्हें फिर से वापिस लेकर आए हैं. इस पूरे वकफ़े में एक अलग किस्म के जीव जंतुओं ने धरती पर अपनी जगह बना ली है. ऐसे में उन्हें लेकर आना कितना सही है? ये सवाल विज्ञानजगत से जुड़े लोग पूछ रहे हैं.
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने कमोबेश इस किस्म की ही चिंता ज़ाहिर की है. और इस चिंता पर कोलोसल से हुए सवाल जवाब से भी कुछ इंसाइंट्स मिलते हैं.
जैसे ही कोलोसल लैब्स ने डायरवुल्फ़ के शावक के वीडियो पोस्ट किए, एसिंक फ्यूचर नाम के हैंडल ने सवाल पूछे -
आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? आप कहाँ रुकेंगे? और आपके हिसाब से ऐसा करना एक अच्छा आइडिया क्यों है?
इस पर कोलोसल बायोसाइंसेज़ ने जवाब दिया - भेड़िये हमारे पर्यावरण तंत्र के संतुलन और संरचना को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन महत्त्वपूर्ण इकाइयों को फिर से जिलाना, संरक्षण के हमारे विशाल लक्ष्य का हिस्सा है.
इस पर फिर से एसिंक फ्यूचर ने कमेन्ट किया, जो हमें जानना चाहिए. उन्होंने लिखा - ये अभी तक साफ नहीं हो रहा है कि अभी जो भेड़िये मौजूद हैं, वो ये काम क्यों नहीं कर पा रहे हैं? और पर्यावरण के संतुलन या संरचना में ऐसा क्या गड़बड़ है, जिससे आपको लगता है कि आप इसका इलाज कर सकते हैं? इस प्वाइंट पर अभी तक कोलोसल ने कोई जवाब नहीं दिया.
About The Author

‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
अपनी टिप्पणियां पोस्ट करें
Latest News
18 Apr 2025 22:27:21
चतरा। प्रतापपुर मुख्यालय स्थित जयप्रकाश डैम में शुक्रवार को डूबने से दो स्कूली बच्चों की मौत हो गई है। मृतक...
टिप्पणियां