सिरमौर जिला के गिरिपार की पहाड़ियों में विशू मेले की रौनक
देव संस्कृति और लोक परंपराओं का उत्सव
नाहन । सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र की पहाड़ियों में इन दिनों विशू मेले की धूम है। ढोल-नगाड़ों की गूंज, देव छड़ियों की शोभायात्रा और पारंपरिक वेशभूषा में सजे ग्रामीणों के बीच मेले का उल्लास चरम पर है। यह मेला न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है बल्कि गिरिपार की प्राचीन देव संस्कृति और सामाजिक एकता की जीवंत झलक भी पेश करता है।
विशू मेले की शुरुआत प्रत्येक गांव द्वारा अपने ग्राम देवता की छड़ी (चंडी) को सुसज्जित कर मेला स्थल तक लाने से होती है। इस यात्रा को 'देव यात्रा' कहा जाता है, जो ढोलक, नगाड़ों और रणसिंघा की ताल पर पारंपरिक उल्लास के साथ सम्पन्न होती है। जब विभिन्न गांवों की देव छड़ियाँ एकत्र होती हैं, तो इसे "देव सम्मेलन" का स्वरूप मिल जाता है और यहीं से मेले की विधिवत शुरुआत होती है।
विशू मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह सदियों पुरानी एक सांस्कृतिक परंपरा है, जिसका सीधा संबंध कृषि जीवन और ऋतु चक्र से है। बैसाख माह में रबी की फसल कटने के बाद किसान अपने देवी-देवताओं का आभार व्यक्त करने के लिए इस मेले का आयोजन करते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार विशू मेले की परंपरा लगभग 300 से 500 वर्षों पुरानी है। यह उस गहरी देव संस्कृति से जुड़ी है जिसमें हर गांव का अपना एक स्थानीय देवता होता है। इन देवताओं से जुड़ी लोकगाथाएं और मान्यताएं पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं।
गिरिपार क्षेत्र जो गिरी और टोंस नदियों के मध्य स्थित है, की सांस्कृतिक पहचान शेष हिमाचल से अलग है। यहां बोली 'सारथी' बोली जाती है और लोक जीवन में हारुल, थड़ा नृत्य तथा नाटी जैसी सांस्कृतिक विधाओं का विशेष स्थान है। विशू मेले में इन सभी रंगों की झलक देखने को मिलती है, जो इसे एक जीवंत सांस्कृतिक उत्सव में परिवर्तित कर देती है।
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