गुरुकुल, कला वीथिका, कानपुर का सह आयोजन

गुरुकुल, कला वीथिका, कानपुर का सह आयोजन

कानपुर । हुलास अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी कला दीर्घा, अंतरराष्ट्रीय दृश्यकला पत्रिका रविवार, 20 अप्रैल को गुरुकुल कला वीथिका, कानपुर में हुलास,अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी का आयोजन कर रही है, जिसका उद्घाटन प्रख्यात लेखक एवं उपन्यासकार प्रियंवद द्वारा सायं 4 बजे किया जाएगा। प्रदर्शनी की क्यूरेटर पत्रिका की प्रकाशक डॉ लीना मिश्र हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों से सम्मिलित हो रहे 21 कलाकारों की कृतियाँ प्रदर्शनी में सम्मिलित हैं। प्रदर्शनी के विषय में डॉ लीना मिश्र ने बताया कि कलाएँ मन को रंगती हैं। ऊर्जा और उमंग से भर देती हैं। झंझावातों से भरी दुनिया से परे मन एक नई और अनोखी दुनिया में प्रवेश करता है- वह दुनिया होती है हुलास की, यानी उल्लास की, जहाँ से वापस आने का जी नहीं करता। मन रम जाता है, रंजित हो उठता है। इसीलिए हमारे विकास के साथ-साथ अनुस्यूत कलाएँ भी न कि सिर्फ विकसित और परिमार्जित होती हुई आगे बढ़ती हैं बल्कि हमें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती और विकास के पद-चिह्नों को सुरक्षित एवं संरक्षित भी करती चलती हैं। कलाओं का हमारे जीवन और मानवता के परिप्रेक्ष्य में इस तरह भी महत्त्व बढ़ जाता है कि ये हमारे विकास के साथ भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और अन्य प्रभावकारी परिस्थितियों के अनुसार नए-नए रूपों और विविध आंचलिक विशिष्टताओं से सिक्त लोक, पारम्परिक और समकालीन कला-प्रयोगों के साथ आगे बढ़ती हुई हमारे सुसंस्कृत होने का प्रमाण देती हैं। आज भारतवर्ष जैसी विविध संस्कृति, बोली-भाषा और रीति-रिवाजों से समृद्ध राष्ट्र के विभिन्न अंचल अपनी अलग-अलग विशेषताओं के कारण देश-दुनिया के लिए आकर्षण हैं और लोग उन्हें अपने जीवन में आंशिक या सम्पूर्णता में अपनाना चाहते हैं, सराबोर हो जाना चाहते हैं, इनके रस-रंग में। इनमें स्थानीय संवेदनाओं और रूपों के साथ ही वादी, संवादी और अनुवादी स्वरों की तरह रंगों का भी विशेष महत्त्व होता है जो स्वर लहरियों की तरह जीवन को प्रकारान्तर से प्रभावित करते हैं। इसका मनोवैज्ञानिक महत्त्व भी होता है और यह मन, भावनाओं और हमारे व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

दृश्यगत तीव्रता और स्पंदन के कारण विभिन्न रंगों का हमारे मन और शरीर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है, जो किसी व्यक्ति की मनः स्थिति, मानसिकता और यहाँ तक कि शारीरिक प्रतिक्रियाओं एवं व्यवहार को भी प्रभावित कर सकते हैं। रंगों का प्रभाव सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत अनुभवों पर भी निर्भर करता है, लेकिन सामान्यत: रंगों के बारे में कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव स्थापित भी हैं, जैसे लाल रंग ऊर्जा और उत्तेजना का प्रतीक होता है। यह तेजी से ध्यान आकर्षित करता है और इसे प्रायः चेतावनी, खतरे या महत्त्वपूर्ण संकेतों के रूप में देखा जाता है। लाल रंग का प्रभाव रक्तचाप और दिल की धड़कन को बढ़ा सकता है, इसलिए इसे कभी-कभी आक्रामकता और तनाव से जोड़ा जाता है। हालाँकि, यह रंग प्रेम और आकर्षण के प्रतीक के रूप में भी प्रयोग होता है। इसी तरह नीला रंग शांति, ठंडक और स्थिरता का प्रतीक होता है। यह मन को शांत करता है और चिंता को कम करने में मदद करता है। नीला रंग मानसिक स्पष्टता को दृढ़ करता है और गहरे विचार या ध्यान में मदद करता है। यह रंग विश्वास और ईमानदारी से भी जुड़ा हुआ है, इसलिए यह अक्सर व्यावसायिक वातावरण में व्यवहृत होता है। हरा रंग प्रकृति, दुनिया और जीवन के प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है। यह संतुलन, ताजगी और समृद्धि से जुड़ा होता है। हरे रंग का मानसिक प्रभाव शांत और सुखदायी होता है। यह रंग शांति और सुरक्षा की प्रतीति उत्पन्न करता है और तनाव को कम करने में सहायक होता है। पीला रंग खुशी, ऊर्जा और आशा का प्रतीक होता है। यह रंग मन को उत्तेजित करता और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।

इसे प्रोत्साहन और उत्साह के रंग के रूप में देखा जाता है। इसी तरह नारंगी रंग उत्साह, रचनात्मकता और जीवनशक्ति का प्रतीक होता है। यह रंग उत्तेजना और उत्साह को बढ़ाता है और सामाजिक गतिविधियों के लिए एक उत्तम रंग माना जाता है। यह रंग सकारात्मकता और खुशी से जुड़ा हुआ है। बैंगनी रंग विलासिता, उच्चता और रचनात्मकता का प्रतीक होता है। यह रंग आत्ममूल्य और मानसिक स्पष्टता से जुड़ा हुआ है और प्रायः शाही एवं धन्यतापूर्ण परिवेश में देखा जाता है। बैंगनी रंग मानसिक विकास और आध्यात्मिकता को भी उत्तेजित कर सकता है। कला की दुनिया में सबसे अधिक बरता जाने वाला सफेद रंग पवित्रता, स्वच्छता और शांति का प्रतीक होता है। यह रंग मानसिक स्थिति को साफ एवं संयमित रखता है और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। सफेद रंग को शांति और आरम्भ के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है और इसका विरोधी काला रंग गहरे अर्थ और शक्ति से जुड़ा होता है। यह रंग गूढ़ता, रहस्य और गंभीरता का प्रतीक है। काले रंग का उपयोग शक्ति, अधिकार और परिष्कार को व्यक्त करने के लिए किया जाता है लेकिन यह उदासी, अकेलापन और भय दर्शाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से काले रंग को शोक और विरोध के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इसीलिये सदैव की भाँति इस बार भी कला दीर्घा, अंतरराष्ट्रीय दृश्यकला पत्रिका रंगों का उल्लास लेकर हुलास प्रदर्शनी के रूप में विविध आंचलिक सुवास से लबरेज कृतियों का गुलदस्ता लेकर उत्तर प्रदेश के महत्त्वपूर्ण औद्योगिक नगर कानपुर की गुरुकुल कला वीथिका में उपस्थित है जिसमें सम्मिलित सभी 21 कलाकारों की कृतियाँ उनके व्यक्तित्व, उसकी सोच और कौशल के साथ ही उनकी पृष्ठभूमि विशेष, जहाँ की आबो-हवा से उन्हें ऊर्जावान काया, सकारात्मक सोच और रचनात्मक मन प्राप्त हुआ है, की विशेषताएं देखी, पहचानी और आत्मसात की जा सकती हैं। इन कृतियों में कलाकारों का अपने अतीत में झाँकता और सुखद यात्रा को महसूस करता हुआ मन भी पढ़ा जा सकता है जिसमें वह अपनी अन्तरात्मा को उतार देता है। ऐसे समस्त कलाकारों की महत्त्वपूर्ण और प्रतिनिधि कृतियों से सुसज्जित यह हुलास प्रदर्शनी आपको भी उल्लास के सुवासित रस-रंग से भिगो देगी, ऐसी आशा है। गुरुकुल कला वीथिका में यह प्रदर्शनी आयोजित कर हमारे सह-आयोजक बनने के लिए आचार्य अभय द्विवेदी एवं उनकी पूरी टीम को धन्यवाद। बताते चलें कि ‘कलादीर्घा’ भारतीय कलाओं के विविध स्वरूपों का दस्तावेजीकरण और उसके प्रसार के उद्देश्य से सन 2000 में स्थापित, दृश्य कलाओं की अन्तरदेशीय कला पत्रिका है जो अपनी उत्कृष्ट कला-सामग्री और सुरुचिपूर्ण-कलेवर के कारण सम्पूर्ण कलाजगत में महत्त्वपूर्ण पत्रिका के रूप में दर्ज की गई है। अपने स्थापनावर्ष से लेकर आज अपनी यात्रा के रजत जयन्ती वर्ष पूर्ण करने तक पत्रिका ने उत्साहपूर्वक लखनऊ, पटना, भोपाल, जयपुर, बंगलौर, नई दिल्ली, लंदन, बर्मिंघम, दुबई, मस्कट, वाराणसी, कानपुर आदि महानगरों में अनेक कला-गतिविधियों का उल्लेखनीय आयोजन किया है और आगे भी सोल्लास अपने दायित्वों का निर्वहन करती रहेगी। पत्रिका ने समय-समय पर वरिष्ठ कलाकारों के कला-अवदान का सम्मान करते हुए युवा कलाकारों को उनकी कलाभिव्यक्ति और नित नए प्रयोगों को कलाप्रेमियों के समक्ष प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान किया है। हाल में ही आयोजित कला प्रदर्शनी हौसला, वत्सल, समर्पण, ढिबरी, बसन्त, नास्टैल्जिया25 और चौपाल के उपरान्त कानपुर में हुलास प्रदर्शनी के साथ उपस्थित है। इस प्रदर्शनी में लखनऊ से कला दीर्घा के सम्पादक डॉ अवधेश मिश्र के साथ रविकांत पाण्डेय, डॉ अनीता वर्मा, डॉ रीना गौतम, श्रद्धा तिवारी, प्रशांत चौधरी, सुमित कश्यप, दीक्षा वाजपेयी एवं अर्चिता मिश्र, वाराणसी से डॉ सुनील कुमार पटेल एवं रणधीर सिंह, जम्मू ऐंड कश्मीर से रंजू कुमारी, हरिद्वार से निधि चौबे, दिल्ली से भारत कुमार जैन, अलीगढ़ से सुमित कुमार, बुरहानपुर से अनुराग गौतम, जयपुर से अपूर्वा चौधरी, पॉन्डिचेरी से अभिषेक कुमार, अमृतसर से डॉ ललित गोपाल पाराशर, सतना से डॉ राकेश कुमार मौर्य, मनेन्द्रगढ़ से गणेश शंकर मिश्र सम्मिलित हैं।

आशा है यह चित्र-प्रदर्शनी आपको अपने सुवास, सांगीतिक स्पन्दन, ऊर्जा और हुलास से लबरेज कर दृश्यात्मक अनुभव को अविस्मरणीय बना देगी।
प्रदर्शनी के समन्वयकद्वय डॉ अनीता वर्मा एवं सुमित कुमार ने बताया कि यह प्रदर्शनी गुरुकुल कला वीथिका, कानपुर में 26 अप्रैल तक अपरान्ह 03 बजे से सायं 07 बजे शाम तक दर्शकों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी।

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