मुख्य सचिव के बयान पर भड़के बिजली कर्मी, 16 अप्रैल से बड़े आंदोलन का ऐलान
निजीकरण को बताया लूट की योजना
लखनऊ। प्रदेश में बिजली के निजीकरण को लेकर एक बार फिर विवाद गरमा गया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने मुख्य सचिव पर निजीकरण को लेकर गुमराह करने वाले बयान देने का आरोप लगाया है। समिति ने कहा है कि उड़ीसा, दिल्ली और चंडीगढ़ जैसी जगहों की मिसाल देकर निजीकरण को सक्सेस स्टोरी बताना सच्चाई को छिपाने की कोशिश है। इन राज्यों में निजीकरण असफल रहा और यह केवल सार्वजनिक संपत्ति की लूट की कहानी है।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि रिलायंस पावर की तीनों कंपनियों के लाइसेंस 2015 में भ्रष्टाचार और अक्षमता के चलते रद्द कर दिए गए थे। बावजूद इसके आज निजीकरण की तारीफ की जा रही है। समिति ने यह भी आरोप लगाया कि बेहरा ने अपने कार्यकाल के दौरान टाटा पावर को उड़ीसा की बिजली कंपनियां सौंपीं, लेकिन उनकी समीक्षा तक नहीं कराई। संघर्ष समिति के अनुसार, 2000 में जब उड़ीसा में सुपर साइक्लोन आया तो निजी अमेरिकी कंपनी एईएस ने बिजली के ढांचे को दोबारा खड़ा करने से मना कर दिया और भाग गई। इसके बाद 2020 तक कंपनियां सरकारी नियंत्रण में ही रहीं और असली सुधार भी उसी दौर में हुआ। टाटा पावर को पहले से सुधरी कंपनियां सौंपी गईं।
समिति ने इस कहानी को निजीकरण की सफलता नहीं, सरकारी नियंत्रण की उपलब्धि बताया। चंडीगढ़ को लेकर समिति ने दावा किया कि वहां बिजली विभाग हर साल 200 करोड़ का मुनाफा कमा रहा था और उसकी संपत्तियां 22,000 करोड़ रुपए की थीं। बावजूद इसके, विभाग को मात्र 871 करोड़ में निजी हाथों में सौंप दिया गया। यह सक्सेस नहीं, सीधी-सी लूट है। संघर्ष समिति ने बताया कि दिल्ली में निजीकरण के बाद टाटा पावर ने एक साल के भीतर 1970 कर्मचारियों को जबरन रिटायर कर दिया। 19 साल तक कर्मचारियों को उनका क्लेम नहीं दिया गया। आज भी 300 से ज्यादा कर्मचारियों से जुड़े केस अदालतों में चल रहे हैं, जिन पर कंपनी 137 करोड़ रुपए सालाना खर्च कर रही है, लेकिन कर्मचारियों का हक नहीं दे रही।
मुख्य सचिव का बयान कि "बिजली के निजीकरण से विकसित भारत और ग्रोथ संभव है", पर पलटवार करते हुए समिति ने कहा कि गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना जैसे अग्रणी राज्य आज भी सरकारी बिजली प्रणाली पर काम कर रहे हैं। वहां भी तीव्र विकास हो रहा है। समिति ने इस बयान को भ्रामक और गुमराह करने वाला बताया।
समिति ने कहा है कि उड़ीसा, दिल्ली और चंडीगढ़ के बिजली कर्मी जल्द ही लखनऊ पहुंचेंगे। निजीकरण के बाद हुए उत्पीड़न की दास्तान प्रेस के सामने रखेंगे। 16 अप्रैल से पूरे प्रदेश में जनसंपर्क अभियान की शुरुआत होगी, जो तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार बिजली निजीकरण का निर्णय वापस नहीं लेती। बिजली कर्मी किसी भी बलिदान के लिए तैयार हैं, लेकिन सार्वजनिक संपत्ति की लूट बर्दाश्त नहीं होगी।
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