निजीकरण की जल्दी में गलत बयानी कर रहे हैं मुख्य सचिव : शैलेन्द्र दुबे
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा है कि निजीकरण की जल्दी में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव निजी औद्योगिक घरानों के साथ मीटिंग कर गलत बयानी कर रहे हैं। उड़ीसा,दिल्ली और चंडीगढ़ में निजीकरण की कहानी सक्सेस स्टोरी नहीं है बल्कि निजीकरण के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति की लूट की कहानी है। संघर्ष समिति ने कहा कि बिजली कर्मचारी किसी भी कुर्बानी के लिए तैयार हैं किंतु निजीकरण के नाम पर उत्तर प्रदेश में किसी भी कीमत पर सार्वजनिक संपत्ति की लूट नहीं होने देंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग के पूर्व अध्यक्ष उपेंद्रनाथ बेहरा को मीटिंग में बताना चाहिए था कि निजीकरण होने के 17 साल बाद उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2015 में रिलायंस पावर की तीनों कंपनियों के लाइसेंस अक्षमता और भारी भ्रष्टाचार के चलते रद्द कर दिए थे। क्या यही सक्सेस स्टोरी है?
समिति ने कहा कि उपेन्द्र नाथ बेहरा ने ही कोरोना के दौरान वर्ष 2020 में टाटा पावर को उड़ीसा की चारों विद्युत कंपनियों सौंपी थीं जब वे नियामक आयोग के अध्यक्ष थे। आज जब लखनऊ आकर वे निजीकरण की तारीफ कर रहे हैं तो उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि उन्होंने 2022 तक अपनी कार्यकाल के दौरान निजीकरण के लिए जो मापदंड तय किए थे उन मापदंडों के अनुसार टाटा पावर की समीक्षा क्यों नहीं की? क्या निजी घरानों से मिली भगत ही सक्सेस स्टोरी है।
संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण होने के बाद वर्ष 2000 में उड़ीसा में सुपर साइक्लोन आया था और अमेरिका की सबसे बड़ी निजी कंपनी ए ई एस कंपनी ने बिजली के ध्वस्त हुए ढांचे को पुनः निर्मित करने में धनराशि खर्च करने से मना कर दिया था और कम्पनी वापस अमेरिका भाग गई थी। इसके बाद 2020 तक यह कंपनी सरकारी नियंत्रण में रही। 2015 में रिलायंस का लाइसेंस रद्द हो जाने के बाद बाकी तीनों कंपनियां भी 2015 से 2020 तक सरकारी क्षेत्र में रही।
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