जहाँ उम्मीदें फिर से मुस्कुराती हैं — एडीएम सिटी गंभीर सिंह ने दिया अनाथ बच्चे को नया जीवन
एक बच्चे का भविष्य सँवार कर, एक अधिकारी ने मानवता की असली परिभाषा गढ़ी
गाजियाबाद। आज के समय में जब स्वार्थ और औपचारिकता ने रिश्तों को खोखला कर दिया है, ऐसे में भी कुछ लोग अपनी करुणा से दुनियां को रोशन कर रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं गंभीर सिंह एडीएम सिटी जो गाजियाबाद में तैनात हैं,
करीब एक साल पहले, कोरोना की त्रासदी में अभिजय साहू नामक एक मासूम बच्चा अपने माता-पिता को खो बैठा था। कमजोर दादी के भरोसे बचा छोटा सा जीवन, अनिश्चितता के गर्त में डूब रहा था। तभी एक सहृदय अधिवक्ता ने अभिजय को गंभीर सिंह के समक्ष प्रस्तुत किया और मदद की गुहार लगाई।
गंभीर सिंह ने परिस्थिति को गहराई से समझते हुए, केवल सहायता करने का नहीं, बल्कि उस बच्चे का संपूर्ण जीवन संवारने का संकल्प लिया। उन्होंने स्वयं अटल आवासीय विद्यालय योजना के तहत अभिजय का फॉर्म भरवाया, उसका मार्गदर्शन किया, और प्रेरित किया — जिसके परिणामस्वरूप अभिजय परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया!
आज अभिजय शिक्षा के पथ पर न केवल बढ़ रहा है, बल्कि अच्छे अंकों के साथ कक्षा 7 में प्रवेश भी कर चुका है। उसकी आँखों में फिर से सपने हैं, भविष्य के प्रति विश्वास है — और इसके पीछे है गंभीर सिंह की संवेदनशील पहल।
भावुक क्षण: कुछ दिन पहले, अभिजय की बूढ़ी दादी ने कठिनाइयों को पार करते हुए, एडीएम कार्यालय पहुँचकर गंभीर सर को धन्यवाद ज्ञापित किया। हाथों में मिठाई का छोटा डिब्बा और आँखों में श्रद्धा के आँसू लिए, उन्होंने कांपती आवाज में कहा —"बेटा, तुम हमारे लिए भगवान से कम नहीं हो। भगवान तुम्हें खूब तरक्की दे, ताकि तुम और भी बच्चों का जीवन सँवार सको।"
यह दृश्य केवल एक धन्यवाद नहीं था, बल्कि उन असंख्य अनसुनी दुआओं की गूँज थी, जो किसी जरूरतमंद दिल से निकली थीं।
अंतिम पंक्तियाँ: गंभीर सिंह हमें यह सिखाते हैं कि एक अधिकारी केवल कानून का रक्षक नहीं होता, बल्कि वह समाज का मार्गदर्शक, आशाओं का संजीवनीदाता और मानवता का असली नायक होता है।
उनका हर निर्णय, हर मुस्कान और हर संवेदनशील पहल इस बात की मिसाल है कि एक सही समय पर बढ़ाया गया हाथ किसी का पूरा भविष्य बदल सकता है।
सैल्यूट है ऐसे अधिकारियों को — जो मानवता को जीवित रखते हैं।
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