सच्चा सुख तो केवल संयम में ही है, भौतिक पदार्थों में नहीं: नव्या शाह

सच्चा सुख तो केवल संयम में ही है, भौतिक पदार्थों में नहीं: नव्या शाह

झाबुआ । भौतिक सुख सुविधाएं दुःख का कारण है, और जैसे जैसे हम इन्हें छोड़ते जाते हैं, वैसे ही वैसे हमें सुख की अनूभूति होने लगती है। वस्तुत: संसार के भौतिक पदार्थों में सुख है ही नहीं, सच्चा सुख तो केवल संयम में ही है। इसलिए मनुष्य जीवन को सार्थकता प्रदान करते हुए संयम पथ को ही अंगीकार किया जाना चाहिए।

उक्त विचार द्रढता पूर्वक वैराग्य पथ की ओर अग्रसर हुए मुमुक्षु ललित भंसाली एवं मुमुक्षिका कुमारी नव्या शाह द्वारा हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत के दौरान व्यक्त किए गए हैं। मुमुक्षु (दीक्षार्थी) ललित भंसाली एवं मुमुक्षिका कुमारी नव्या शाह जिले के थान्दला नगर में आयोजित होने वाली जैन भगवती दीक्षा महोत्सव के दो दिवस पूर्व इस संवाददाता से बात कर रहे थे।

जैन भगवती दीक्षा महोत्सव का यह आयोजन 30 अप्रैल को थांदला नगर के अणु पब्लिक स्कूल परिसर में जैनाचार्य उमेशमुनि महाराज के शिष्य, प्रवर्तक श्री जिनेन्द्र मुनि महाराज के पावन सानिध्य में संपन्न होगा, जिसमें मुमुक्षु ललित भंसाली एवं मुमुक्षिका कुमारी नव्या शाह दीक्षा ग्रहण करेंगे। दीक्षा महोत्सव को लेकर समग्र जैन समाज सहित संपूर्ण नगर में अत्यंत हर्षोल्लास का वातावरण है, और जैन समाज द्वारा उक्त विराट आयोजन के परिप्रेक्ष्य में व्यापक स्तर पर तैयारियां की गई है। आयोजित कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए जिला सहित विभिन्न प्रदेशों से समाज जनों का आगमन शुरू हो गया है।

दीक्षा महोत्सव के पूर्व मुमुक्षु ललित भंसाली ने हिंदुस्थान समाचार से बातचीत करते हुए आगे कहा कि भौतिक सुख सुविधाएं दुःख का कारण है, और जैसे जैसे हम इन्हें छोड़ते जाते हैं, वैसे ही वैसे हमें सुख की अनूभूति होने लगती है, और जब हम अध्यात्म से जुड़ते हैं तो हमारी मानसिक चिंताएं दूर होने लगती है। दीक्षार्थी ने कहा कि हमारे मन में मोह मद, माया और मान रूपी विकार भरा हुआ है, जब तक यह खाली नहीं होगा, तब तक हम अध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो ही नहीं सकते हैं, क्योंकि यदि अंतर्मन में भगवान् को बिठाना है, तो मन के सब विकारों को निकाल कर बाहर करना ही होगा।

दीक्षार्थी से जब यह जानना चाहा कि आपके मन में समृद्धशाली, वैभवयुक्त और उपलब्ध साधनों सुविधाओं को एकाएक छोड़ देने का विचार कैसे आया? दीक्षार्थी ललित ने कहा कि 2012 में मधुबालाजी महाराज सतीजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ था, तब उन्होंने मुझे प्रतिक्रमण करने के लिए कहा था। (प्रतिक्रमण का तात्पर्य है, रोजाना शाम को दिनभर में हुई गलतियों का प्रायश्चित करना) और जब प्रतिक्रमण करना शुरू किया, तो मन के विकार दूर होने लगे, और सुख की अनुभूति होने लगी। फिर कुछ शास्त्रों का भी अध्ययन किया तो त्याग में रुझान बढ़ा और जब साधु समाज के सानिध्य में दो वर्ष तक रहा तो मुझे आत्मिक सुख की अनुभूति हुई, और तब मन में यह बात अच्छी तरह बैठ गई कि यह मानव भव मुझे अध्यात्म साधना के ही लिए मिला है, जिसे व्यर्थ नहीं गवां दिया जाना चाहिए, मैंने बस उसी वक्त निश्चित कर लिया था कि अब सब कुछ छोड़कर संन्यास मार्ग को अंगीकार करुंगा।

जैन भगवती दीक्षा महोत्सव में दीक्षा ग्रहण करने जा रही एक और दीक्षार्थी (मुमुक्षिका) कुमारी नव्या से भी हिंदुस्थान समाचार ने बात की, तो उन्होंने भी संयम मार्ग को श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि संसार असार है, जो कि त्याग करने के ही योग्य है। दीक्षार्थी ने कहा कि मैंने जीवन के आरंभिक काल में ही यह सुनिश्चित कर लिया था कि जो मौक्ष मार्ग भगवान् महावीर स्वामी ने चुना, और जगत् को बताया वही मार्ग सत्य और श्रैष्ठतम है, और मुझे उस मार्ग पर ही जाना है। नव्या ने कहा कि मुझे साध्वी स्वयं प्रभाजी महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ तो संयम मार्ग की प्रेरणा मिली। 2020 में वर्षावास हेतु महाराज साहब सतीजी का नगर आगमन हुआ था, तब मैं उनके सानिध्य में रही, ओर तभी संयम मार्ग का बीजारोपण हो गया था, और तब मन ही मन निश्चित कर लिया था कि साधना का मार्ग ही सर्वोपरि है। इस प्रकार के निश्चय कर ओर दसवीं कक्षा पास करने के बाद फिर आगे पढ़ना उचित नहीं समझा और स्कूली पढ़ाई छोड़कर कुछ आगम ग्रंथों का अध्ययन किया, और तब संसार छोड़ कर साध्वी जीवन अपनाने और दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया।

संन्यास जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है, यह जानते हुए भी आप संन्यास की ओर अग्रसर हुई हैं, क्या इससे मन कभी विचलित नहीं हुआ? इस प्रश्न का तत्काल उत्तर देते हुए दीक्षार्थी नव्या ने कहा कि हमने अनंत जीवन में अनंत कठिनाईयां देखी और सही है, जो कि साधु जीवन की कठिनाइयों से भी अधिक है, फिर साधु जीवन की कठिनाइयों से विचलित होने का आखिर क्या औचित्य हो सकता है।

किंतु जैन धर्म में तो यह भी कहा गया है कि महिलाओं को मोक्ष पद की प्राप्ति नहीं हो सकती, जब पूछा गया तो नव्या ने कहा कि यह मत दिगंबर संप्रदाय में व्यक्त किया गया लगता है, किंतु श्वैतांबर संप्रदाय में ऐसा उल्लेख नही मिलता है। दीक्षार्थी ने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि मरुदेवी सहित ओर भी अन्य साधु भगवंत मोक्ष मार्ग पर गए हैं, और आगे भी जाते रहेंगे।

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