पहलगाम हमले से 'टीआरएफ' फिर सुर्खियों में
पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन
- इस संगठन को खड़ा करने की साजिश सीमा पार से रची गई थी
- अनुच्छेद 370 हटने के बाद टीआरएफ की शुरुआत ऑनलाइन यूनिट के तौर पर हुई थी
नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले से एक बार फिर सुर्खियों में आया द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) समूह पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का मुखौटा संगठन है। पाकिस्तान में रहने वाला शेख सज्जाद गुल इसका सरगना है। 2019 में स्थापित टीआरएफ पर भारत सरकार कई बार जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली विभिन्न गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा चुकी है। इस संगठन को खड़ा करने की साजिश सीमा पार से रची गई थी।
टीआरएफ के गठन में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका रही है। इसका गठन इसलिए किया गया था, ताकि आतंकी हमलों में पाकिस्तान का नाम सीधे तौर पर न आए। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद टीआरएफ की शुरुआत ऑनलाइन यूनिट के तौर पर हुई थी। पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेकर टीआरएफ फिर सुर्खियों में है। सुरक्षा और इंटेलिजेंस एजेंसियों ने पहलगाम हमले के तीन संदिग्ध आतंकियों के स्केच जारी किए हैं। इनके नाम आसिफ फौजी, सुलेमान शाह और अबु तल्हा बताए गए हैं। कहा जा रहा है कि हमले का मास्टरमाइंड लश्कर-ए तैयबा का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद है।
टीआरएफ के जिम्मेदारी लेने के बाद पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने आनन-फानन में कहा कि इस हमले में पाकिस्तान का हाथ नहीं है। सनद रहे पाकिस्तान की सेना और आईएसआई पिछले दरवाजे से टीआरएफ की मदद करती है। टीआरएफ आमतौर पर लश्कर के फंडिंग चैनलों का प्रयोग करता है। गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा में बताया था कि टीआरएफ यानी द रेजिस्टेंस फ्रंट आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन है। इस बीच नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) जांच के लिए पहलगाम पहुंच चुकी है। पहलगाम में मंगलवार दोपहर हुए आतंकवादी हमले में 27 लोगों की मौत हो गई। 20 से ज्यादा लोग घायल हैं। जम्मू-कश्मीर में 14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा हमले के बाद यह सबसे बड़ा हमला है। पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर फिदायीन हमला हुआ था। इसमें 40 जवान शहीद हुए थे। इसकी जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। जैश-ए-मोहम्मद का नाम सामने आने के बाद दुनिया में पाकिस्तान बेनकाब हो गया था।
फिर आईएसआई और पाकिस्तान की सेना ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) का गठन किया। जम्मू-कश्मीर पुलिस की 2022 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर में सुरक्षाबलों के 90 से ज्यादा ऑपरेशन में 42 विदेशी नागरिकों समेत 172 आतंकी मारे गए। घाटी में मारे गए ज्यादातर आतंकी (108) द रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तैयबा के थे। इसके साथ ही आतंकी समूहों में शामिल होने वाले 100 लोगों में से 74 की भर्ती टीआरएफ ने की। यह पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह से बढ़ते खतरे को दर्शाता है। टीआरएफ का नाम पहली बार 2020 में कुलगाम में हुए नरसंहार के बाद सामने आया था। उस समय भाजपा कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हजाम की हत्या कर दी गई थी।
टीआरएफ की कोशिश कश्मीर में वही दौर वापस लाने की है, जो कभी 90 के दशक में था। टीआरएफ के आतंकवादी टारगेट किलिंग पर फोकस करते हैं। वे ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते हैं ताकि बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर आने से बचें। 26 फरवरी, 2023 को संजय शर्मा अपनी पत्नी के साथ कश्मीर के पुलवामा में स्थानीय बाजार जा रहे थे, तभी आतंकियों ने उन पर गोलियां चला दीं। इस हमले में उनकी मौत हो गई थी। संजय की हत्या में टीआरएफ का हाथ था। उसने संजय शर्मा की हत्या करने का एकमात्र कारण यह चुना कि वह कश्मीरी पंडित थे। टीआरएफ कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को खासतौर पर निशाना बनाता है।
टिप्पणियां